डे स्पेशल में आज बात करेंगे जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता की जिन्होंने गोलमेज सम्मेलन में अंग्रेजों के अत्याचार का अंग्रेजों को दिखा दिया आईना और साथ ही बताएंगे उस महिला स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जिसने अंग्रेज होकर अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में लिया हिस्सा, नेली सेनगुप्ता।
मूल रूप से अनुशीलन समिति के सदस्य रहे जितेंद्र मोहन सेनगुप्ता पेशेवर वकील थे मगर हिंदुस्तान तब अंग्रेजों के अधीन था इसलिए अपनी वकालत की नौकरी छोड़ साल 1921 में मोहन सेनगुप्ता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। आज यानी 22 फरवरी मोहन सिंह गुप्ता की जयंती है उनका जन साल 1885 में हुआ था।
मोहन सेनगुप्ता या जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता लगातार स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रहे और हर प्रकार से अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने के लिए काम करते रहे। उन्होंने तब के ईस्ट बंगाल ब्रिटिश रेलवे प्रशासन के खिलाफ आंदोलन कर रहे नाखुश कर्मचारियों का ना केवल नेतृत्व किया बल्कि आंदोलन को गति देने के लिए धन भी जुटाया। इसके बाद वे देशबंधु चितरंजन दास के साथ बंगाल प्रोविजंस कांग्रेस कमेटी का हिस्सा बने और कोलकाता कॉरपोरेशन के मेयर चुने गए और वर्ष था 1925।
इसके बाद अगले वर्ष 1926 में जितेंद्र मोहन सेनगुप्ता बंगाल लेजिसलेटिव काउंसिल के लिए चुने गए और साल 1930 में बर्मा चले गए जहां पर उन्होंने जनसभाओं को संबोधित किया मगर उन के बागी तेवरों ने अंग्रेज हुक्मरानों की आंख में खटकना शुरू कर दिया जिसके बाद उन्हें वर्मा को अलग करने का विरोध करने और अंग्रेज सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। यह उनकी दूसरी गिरफ्तारी थी, इससे पहले वह साल 1921 में पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे। हालांकि इस मर्तबा जल्द ही उनकी रिहाई हो गई रंगून में गिरफ्तारी और फिर रिहाई के बाद जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता तुरंत लौट गए और तब देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु हो चुका था और मोहन सेन गुप्ता भी इसका हिस्सा बन गए।
1931 के गोलमेज सम्मेलन में अंग्रेजों के क्षेत्रों में प्रचार की खुल दी पोल
अप्रैल 1930 में जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता लंदन पहुंचे और 1931 की गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए यहां उन्होंने चिटगांव में लोगों के साथ किए गए अत्याचारों को लेकर अपनी इंक्वायरी रिपोर्ट प्रस्तुत की। दरअसल जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता गोलमेज सम्मेलन से कुछ वर्ष पहले गैर आधिकारिक तौर से चिटगांव में अंग्रेजों द्वारा लोगों पर किए गए अत्याचारों को लेकर इंक्वायरी करते रहे यहां हालत बेहद खराब थी जिसने अंग्रेजों के अत्याचारों और भारत में उनके क्रूर शासन की पोल खोल दी उनके इस कृत्य के लिए जब वे इटली के रास्ते शिप से मुंबई पहुंचे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तारीख थी 20 जनवरी 1932
इसके बाद का लगभग सारा जीवन जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता का जेल में बीता। उन्हें लगातार जेलों में बदला गया और यही उनकी तबीयत में गिरावट आई जिसके बाद 23 जुलाई 1933 को स्वतंत्रता सेनानी जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता का रांची में निधन हो गया।
नेली सेनगुप्ता ने हर कदम दिया साथ।
जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता की पत्नी नेली सेनगुप्ता ने भी अपने पति के साथ भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में बराबर का योगदान दिया और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली। नेली सेनगुप्ता वास्तव में एक ब्रिटिश महिला थी जिन्होंने जितेंद्र मोहन सेन गुप्ता के साथ विवाह कर लिया और भारत की होकर रह गई। नेली सेनगुप्ता उन चुनिंदा अंग्रेजों या यूं कहें विदेशों में से हैं जिन्होंने भारत की आजादी के आंदोलन में अपना सर्वस्व दिया और अंग्रेजो के खिलाफ खड़े हुए।