संपादकीय : “पृथ्वी और मानव”                                     

आदर्श हिमाचल ब्यूरो 

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शिमला। हमारी पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ, मानव  ने इस पर कब कदम रखा तथा पर्यावरण क्या है क्या पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन संभव है। ये कुछ ऐसे प्रश्न है जिन पर मानव लंबे समय से गहनता पूर्वक अध्ययन करता आ रहा है। सौरमंडल में पाए जाने वाले सभी ग्रहों में पृथ्वी का अलग महत्व है, क्योंकि मनुष्य का संबंध इसी से है। इसलिए मैं पृथ्वी और मानव के बारे में आप सभी पाठकों को अवगत करवाने का प्रयत्न कर रहा हूं। पृथ्वी प्राचीन काल से ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। मनुष्य को अपनी आजीविका कमाने के लिए सारा समय लगाना पड़ता था तथा उसे इस विषय में सोचने का समय नहीं मिलता था कि पृथ्वी क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई। इसलिए पृथ्वी की जानकारी का कार्य धार्मिक गुरु एवं दार्शनिक किया करते थे ।

मनुष्य इन धार्मिक गुरुओं के डर से पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में विचार प्रकट नहीं करते थे तथा इसे धर्म का अपमान माना जाता था। जिसके लिए इन्हें ऐसा करने के लिए सजा तक भी भोगने के लिए तैयार रहना पड़ता था। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि गैलीलियो और कार्पनिक्स जैसे वैज्ञानिकों के बलपूर्वक मुंह बंद कर दिए गए थे। प्राचीन हिंदू मत अनुसार पृथ्वी को एक सोने का अंडा समझा जाता रहा है। जो एक सर्प के ऊपर कछुए की पीठ पर 4 हाथियों की मदद से टिकी हुई है ।अन्य देशों में भी पृथ्वी को समुद्र में तैरता हुआ अंडा माना जाता था। पृथ्वी का वर्तमान इतिहास 19वीं शताब्दी के बाद का है जो वैज्ञानिक खोजों तथा तथ्य पर आधारित है। पृथ्वी के इस इतिहास को गणित एवं भौतिक शास्त्र भी प्रमाणित करते हैं ।

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‌ लगभग 5 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी सूर्य का एक अभिन्न अंग थी। उस समय पृथ्वी सूर्य का हिस्सा थी तथा आग का एक गोला था उस समय सूर्य मे एक अपकेंद्रित बल उत्पन्न हुआ तथा समय के साथ-साथ यह बल इतना बढ़ गया कि सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के बराबर पहुंच गया ,फलस्वरुप सूर्य का एक हिस्सा की छिटक कर इससे दूर चला गया  तत्पश्चात कभी वापस सूर्य में आकर नहीं मिल पाया बल्कि यह टुकड़े सूर्य से बहुत दूर जाकर घूमने लगे। हमारी पृथ्वी भी इन्हीं टुकड़ों में से एक है पृथ्वी सूर्य से 14.9 करोड किलोमीटर दूर है। इस प्रकार के टुकड़ों की संख्या 9 थी। जो कि 9 ग्रहों के नाम से जाने जाते थे। जिनमें बुध तथा मंगल सूर्य के करीब है तथा अत्यधिक गर्म ग्रह है, इसी प्रकार बृहस्पति शुक्र शनि यूरेनस तथा कुबेर दूर होने के कारण अत्यधिक ठंडे ग्रह है इन सभी ग्रहों के कुछ छोटे-छोटे टुकड़े इन के चारों तरफ घूमने लगे जिसे उपग्रह कहां जाता है जैसे चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। सूर्य का तापमान अत्यधिक गर्म है और यह ऊर्जा लगातार फेंकता रहता है। पृथ्वी तक पहुंचने में सूर्य का प्रकाश 8 मिनट 22 सेकंड का समय लेता है। सूर्य से दूर होने के कारण हमारी पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होती गई तथा यह गैस से तरल अवस्था में परिवर्तित होती गई। पृथ्वी से गैसे तथा पानी अलग हो गए और चारों ओर फैलने लगे।      ‌

करोड़ों वर्षों बाद इसके चारों तरफ के जलवाष्प ठंडे होते गए तथा यह वर्षा के रूप में वापस पृथ्वी पर बरसने लगे। पृथ्वी के समतल ना होने की वजह से वर्षा का जल इसकी खाइयों में भरने लगा। कहा जाता है कि पृथ्वी पर हजारों वर्षों तक लगातार वर्षा होती रही तथा पृथ्वी पर पाई जाने वाली खाइया़ं जल से भर गई ।इन खाइयों को वर्तमान में में सागर तथा महासागरों के रूप में देखा जाता है तथा इसके ऊपरी भाग महाद्वीप कहलाने लगे।

ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी पर जीवन जल से आरंभ हुआ इसमें सर्वप्रथम बिना फूल वाली वनस्पति तथा बिना रीड की हड्डी वाले जीवो (रेंगने वाले)का आरंभ हुआ तत्पश्चात करोड़ों वर्षों पश्चात दूसरी वनस्पति तथा रीड की हड्डी वाले जानवरों का जन्म हुआ धीरे-धीरे स्तनधारी पशु, फलदार और अन्न वाले पौधों का जन्म हुआ। ऐसा माना जाता है कि लगभग 12 करोड वर्ष पूर्व सबसे पहले व्हेल मछली तथा बंदर का जन्म हुआ था।  मानव के जन्म का आरंभ प्लायोसीन युग में हुआ। इसलिए बंदर को मनुष्य का पूर्वज कहा जाता है।आरंभ में मनुष्य में  प्रजनन शक्ति का विकास नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे मानव के विकास का युग शुरू हो गया और मनुष्य की प्रजनन शक्ति आरंभ हो गई।