आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। आज शिक्षा ने अपने पंख इतनी दूर दूर तक फैला लिए है कि हर शहर और कस्बे के साथ-साथ गांवों के कोने कोने तक पहुंच गई है। शिक्षा केवल किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी है जो वास्तविक अनुभव से प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षा शिक्षार्थियों को उत्तम जीवन जीने की बारीकियां सिखाती है। बच्चों को जीवन का सामना करने के लिए शिक्षा देना या प्रशिक्षण देना एक महत्वपूर्ण मामला है।
आजकल ऑनलाइन शिक्षा का खूब प्रसार हो रहा है ।जिस के फायदे प्रत्येक बिंदु पर देखे जा सकते हैं ,लेकिन इस शिक्षा में भी व्यक्तिगत अनुभव एवं व्यवहारिक शिक्षा की एक महत्वपूर्ण कमी रहती है। जिसके लिए सुशिक्षित एवं प्रशिक्षित शिक्षकों का होना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक शिक्षा केंद्र में प्रशिक्षुओं को क्या पढ़ाया जाए और किस प्रकार पढ़ाया जाए, इस पर गहन चिंतन होता है। क्योंकि स्कूल प्रणाली में शिक्षक के महत्व को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। एक विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक एक ऐसा महत्वपूर्ण इंसान होता है जो अपने ज्ञान, धैर्य, प्यार और देखभाल से उसके पूरे जीवन को मजबूत आकार प्रदान करता है। क्योंकि विद्यार्थी जीवन तो गीली मिट्टी के समान होता है। शिक्षक उसे जो भी आकार देना चाहे तो वह दे सकता है। शिक्षक के समर्पित कार्य की तुलना किसी और से नहीं की जा सकती।
शिक्षकों को हमेशा ही देव तुल्य सम्मान और स्थान मिलता रहा है इसलिए कहा गया है” गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा, गुरुर साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः”। यदि समाज उसे ऐसी नजर से देखता है तो शिक्षक का उत्तरदायित्व और भी अधिक बढ़ जाता है। समाज में शिक्षक को एक महान शिक्षाविद माना जाता है। विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करना उसका महत्वपूर्ण कार्य रहता है। उसके पास ज्ञान का व्यापक भंडार होता है ।यही कारण है कि कोई भी बच्चा जब 4 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तो उसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए शिक्षक के पास लाया जाता है। एक बच्चा जो शिक्षक के पास आता है वह गुलाब की एक कच्ची कली की तरह होता है जो खिलने की उम्मीद करता है। यह देखना शिक्षक का कर्तव्य है कि वह छात्र अच्छी तरह से विकास कर रहा है या नहीं । एक आदर्श शिक्षक का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करने में कोई कसर ना छोड़े , ताकि शिष्य, जीवन की हर परिस्थिति का सामना करने में खरा उतरे ।
एक अच्छे शिक्षक को शिष्य के स्वभाव के साथ-साथ अपने विषय का भी संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। उसे एक छात्र की पृष्ठभूमि, संस्कृति और प्रकृति जानने में सक्षम होना चाहिए । शिक्षक छात्रों के लिए मॉडल होना चाहिए। एक कहावत के अनुसार पहला प्रभाव ही आखरी प्रभाव होता है। विद्यार्थी सबसे पहले शिक्षक के व्यवहार एवं आचरण से सीखता है । प्रत्येक शिक्षक का कर्तव्य है कि वह छात्रों के लिए अच्छा उदाहरण पेश करें। सबसे अच्छा उदाहरण स्वयं शिक्षक हो सकते हैं । वह छात्रों के लिए व्यावहारिक पुस्तक बन सकता है। महात्मा गांधी जी कहा करते थे कि एक शिक्षक की आदतें छात्र के मन में अंकित हो जाती है ।
इसलिए शिक्षकों को स्वार्थ, आत्म प्रशंसा, दुर्भावना जैसी गंदी आदतों को नहीं पालना चाहिए। ऐसे शिक्षकों के विद्यार्थियों का कभी भी सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता । शिक्षकों को यह देखना चाहिए कि कक्षा में उचित व्यवहार करने के साथ-साथ वह समाज और बाहर के लिए अच्छे मॉडल भी हो। प्रत्येक शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक छात्र में इस प्रकार के चरित्र का निर्माण करें। विनम्रता की भावना, सदाचारीता, इमानदारी के आदि गुण कहीं किताबी ज्ञान ही ना रह जाए इसके लिए शिक्षकों को व्यावहारिक प्रयास करना होगा। ऐसे शिक्षक जो अपने विद्यार्थियों को इस प्रकार का आकार एवं शिक्षा देने का प्रयत्न करते हैं ,को समाज में भगवान का दर्जा दिया जाता है । गुरु और शिष्य का संबंध केवल किताबी ज्ञान ही सीमित नहीं है बल्कि एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जो माता पिता और संतान से भी बढ़कर है।