मंदिरों के कपाटों के न खुलने से आस्था व अर्थव्यवस्था आहत- राणा 

राजेंद्र राणा
राजेंद्र राणा

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

हमीरपुर।राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने कहा है कि हर फैसले पर केंद्र का मुंह ताकने वाली प्रदेश सरकार अब प्रदेश के मंदिरों को खोलने के लिए असमंजस में एक दूसरे का मुंह ताक रही है। जबकि प्रदेश के मंदिरों व उसके इर्दगिर्द रहने वाली आबादी मंदिरों के बंद होने से पूरी तरह प्रभावित हो रही है। मंदिरों के आसपास हर छोटे-बड़े कारोबारी हाल-बेहाल हो चुके हैं। पंडित, पंडो व पुजारियों की रोटी-रोजी पर संकट के बादल छाए हुए हैं। मंदिरों के आसपास बैठा व्यापारी वर्ग पर कारोबार न होने के कारण कर्जे का बोझ चढ़ रहा है, लेकिन सरकार केंद्र के इशारे का इंतजार कर रही है। हालांकि भारत के सभी बड़े मंदिर अब करीब-करीब एक सेट गाइडलाईन के तहत खोल दिए गए हैं, लेकिन प्रदेश सरकार इस मामले में अभी तक पूरी तरह फिसड्डी साबित हुई है। लगता है कि सरकार को न मंदिरों के आसपास बैठे व्यापारी वर्ग की चिंता है और न ही मंदिरों में पूजा करवाने वाले पंडित, पुजारियों की कोई परवाह है।

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हालांकि कोविड-19 में संस्थानों को खोले जाने के नियम समूचे भारत में एक जैसे हैं, जिन पर कई राज्यों ने अपने विवेकानुसार धार्मिक संस्थानों व मंदिरों को खोलने का फैसला लिया है। लेकिन प्रदेश में केंद्र के रिमोट से चलने वाली सरकार को रिमोट के दबने का इंतजार है। हैरानी यह है कि केंद्र के नियंत्रण में पंगु हो चुकी सरकार अपने स्तर पर कोई भी फैसला लेने में सक्षम नहीं हो पा रही है। राणा ने कहा जब एक ओर सरकार ने बसों में पूरे यात्रियों को बिठाकर सफर की इजाजत दे दी है तो सवाल उठता है कि अब सोशल डिस्टिेंसिंग के साथ मंदिरों में श्रद्धालुओं को आने की इजाजत देने से क्यों हिचकिचा रही है। उन्होंने कहा कि एहतियातन शर्तों के साथ सरकार मंदिरों में श्रद्धालुओं को आने की अनुमति दे। जब वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड में 5 हजार श्रद्धालुओं को आने की अनुमति के साथ मंदिर दर्शनों के लिए खोला गया है तो हिमाचल के मंदिर हिमाचलियों के लिए क्यों नहीं खोले जा सकते हैं।

राणा ने कहा कि सरकार कम से कम हिमाचलियों के लिए तो मंदिरों के कपाट खोले। क्योंकि यह मामला हिंदु आस्था से जुड़ा है और अब श्रद्धालु दर्शनों के लिए बेताब व बेकरार हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने विवेक के अनुसार धार्मिक संस्थानों व मंदिरों को खोलने का फैसला ले। अब सवाल यह उठता है कि सरकार अपने विवेक का इस्तेमाल कब और कैसे कर पाती है? उन्होंने कहा कि हर प्रदेश और हर क्षेत्र की अपनी समस्याएं व अपनी शिकायतें होती हैं जिसे हर राज्य की सरकार अपने विवेकानुसार हल करती है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में सत्तासीन बीजेपी सरकार खुद को अपने स्तर पर कोई भी फैसला लेने में लगातार नाकाम पा रही है। इस कारण से हर छोटा-बड़ा फैसला या तो अफसरशाही के दबाव-प्रभाव में होता है या फिर केंद्र के हंटर के बाद फैसला लिया जाता है।