शिमला : हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने आज हिमाचल में भूस्खलन की घटनाओं को उजागर करने वाली एक याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को नोटिस जारी कर जान-माल के नुकसान का ब्यौरा मांगा है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने नमिता मानिकतला द्वारा दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित किया कि हिमाचल के कई क्षेत्रों में एक नाजुक भूविज्ञान है और भूस्खलन की संभावना है. लगभग हर साल, राज्य में बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिससे जान-माल का नुकसान होता है.
उन्होंने कहा कि राज्य के निवासियों के साथ-साथ पर्यटकों को भी जीवन का मौलिक अधिकार है और यह राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी एहतियाती कदम उठाए जिससे भूस्खलन को रोका जा सके और जीवन और संपत्ति के किसी भी नुकसान को रोका जा सके.
याचिका को जनहित याचिका (PIL) मानते हुए, अदालत ने संबंधित अधिकारियों को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि विशेषज्ञों ने विभिन्न रिपोर्टों में भूस्खलन को रोकने के लिए उपचारात्मक उपायों की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य और एनएचएआई विकास परियोजनाओं, विशेष रूप से बड़े पैमाने पर पहाड़ियों की खुदाई से जुड़ी राजमार्ग परियोजनाओं को क्रियान्वित करते समय इन सुझावों पर ध्यान नहीं दे रहे थे.
याचिकाकर्ता ने अदालत से राज्य सरकार को सभी आपदा संभावित क्षेत्रों में आईआईटी, मंडी और अन्य समान उपकरणों द्वारा विकसित भूस्खलन की भविष्यवाणी करने वाले उपकरणों को स्थापित करने का निर्देश देने का आग्रह किया. उन्होंने प्रार्थना की कि एनएचएआई और राज्य लोक निर्माण विभाग को सभी राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर भूस्खलन की रोकथाम के लिए विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए सभी उपायों को लागू करने का निर्देश दिया जाए.