दीवान राजा
कुल्लू। आज पहाड़ी दिवस है । यानी पहाड़ी बोली का दिन । हम और आप रोज सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक पहाड़ी में ही जीते हैं। बीच में भले ही हिंदी, इंग्लिश,पंजाबी समेत अन्य भाषाओं का झूला झूलते हैं लेकिन यह तय है कि कि अपनी पहाड़ी बोली हमारी सांस-सांस में निहित है ।
भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के समय 01 नवंबर, 1966 को विशाल हिमाचल बना। उसी दिवस को ऐतिहासिक स्मृति दिवस के रूप में पहली नवंबर को पहाड़ी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसी विचार और संकल्प के विकास के लिए 14 अप्रैल, 1971 प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी का गठन और 02 अक्टूबर, 1972 को उद्घाटन हुआ ताकि पहाड़ी बोली का प्रचार-प्रसार व संरक्षण किया जाए ।
युवा भारत के प्रदेश सोशल मीडिया प्रभारी व जिलाध्यक्ष दिवान राजा ने कहा कि अपनी निजी भाषा एवं बोली से ही किसी राष्ट्र की प्रगति सम्भव है क्योंकि निज भाषा व बोली सारी उन्नतियों का मूल आधार है । उन्होंने कहा कि अपनी स्थानीय बोलियों को बचाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है जिसमें युवा वर्ग के सहयोग का होना नितांत आवश्यक है । उन्होंने कहा कि बोलियां कभी मर नहीं सकती क्योंकि ये हमारी रघ-रघ में मौजूद हैं । हम जितना मर्जी हिंदी,अंग्रेज़ी के मोह में फंस लें लेकिन पहाड़ी हमें न आए ऐसा संभव नहीं है ।
आज हिमाचल के हर जिले में अपनी अपनी बोलियां जाती हैं जिनकी अपनी एक अलग पहचान है । कुल्लवी,किन्नौरी,मंडयाली,चम्बयाली,सिरमौरी समेत अन्य बोलियों की अपनी एक मिठास है जो हमें आपस मे जोड़े रखती हैं ।
दीवान राजा ने सभी से अपील करते हुए कहा कि पहाड़ी बोली को बचाये रखने के लिए हम सभी को प्रयास करने होंगे । उन्होंने कहा कि अगर हम आपस में तय कर लें कि हम अधिकतर वार्तालाप,सम्प्रेषण,परीक्षाओं की तैयारियों के लिए संवाद समेत सोशल मीडिया में बातचीत अपनी स्थानीय बोली में करने की आदत डालें तो निश्चित तौर पर बोलियों का खत्म होता वजूद बचाया जा सकता है ।