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हिंदी दिवस पर कविता
हिंदी दिवस पर कविता
आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। रिस रिस कर
टपक झपक कर
सहमी सहमी बंधी ये बोले
हां हां मैं हिंदी हूं, हां हां मैं हिंदी हूं
अरे सौदा करने आए अनेक
सौदा कर के विफल गए
बेच बेच मुझे घर गलियां तू
हर गया क्या ?
हार गया क्या अपने मन से
हार गया क्या अपने तनसे
अरे सौदा कर कुछ और वस्तु का
भारत की मैं बेटी हूं, जन्मी मैं इस कलयुग में
हां हां हां  हिंदी हूं,
अभिमानी नही मैं अभिलाषी हूं
आज की नहीं, मैं अदब पुरानी हूं
अक्लक से मेरे बहे शब्द श्वेत
अकल्प सी मेरी रचना है,
काल अकाल की तोडी बेड़ी मैने
मैं अमर सी, मैं अटल सी जीती हूं
हां हां मैं हिंदी हूं,
एक टक सुनते श्रोता सारे
मधुर स्वर मेरे सबको मोहे
भारत की बेटी  हूं मैं
हां हां मैं हिंदी हूं
धरा पर लड़ के
कट के मर के, चले गए फिरंगी सब,
मुगल, अफगान, टर्किश सारे, लूटा हिंदुस्तान जब,
लूट लिया वतन हमारा, दिया दान गरीबी का,
तलवार चली बेदर्दी से,
तलवार चली बेकद्री से,
अंश मेरा मिटा न पाए
रूह को मेरी अब छू न पाए
ऐसी बनी भाषा में उस दिन
ऐसी बनी भाषा में उस दिन,
कवि मुझे क्यों ढूंढे अब तू
लेखक मुझे क्यों खोजे अब तू
सब में बसी मैं वही,
हिंदी हूं,
सब में बसी मैं वही,
हिंदी हूं,
अब माता मेरी नमन मैं तुम्हे करती हूं
संस्कृत की थी मैं लाडली
हां हां मैं वही हिंदी हूं
हां हां मैं वही हिंदी हूं
कवि के लिए हिंदी –
मैं नमन माता तुम्हें करता हूं,
अपना शीश परस्पर झुकता हूं,
नसों में हिंदी, रगो में हिंदी
हिंदी का ही कवि हूं कवि मैं
हिंदी का ही अंश हूं मैं  हूं,
दान आज मैं तुम्हे सब करता हूं
मेरी कलम आज तुम्हे सौपता हूं
कलमकार नही मैं, भक्त यही तुम्हारा हूं
हिंदी का ही अंश ही मैं
हिंदी का मैं बेटा हूं
– आदित्य रोहिला
शूलिनी विश्विद्यालय ( जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग)
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