आदर्श हिमचल ब्यूरो
शिमला। हाल में अखबारों में छपे कई लेखों ने इस आशय की एक धारणा बनाने की कोशिश की है कि भारत में कम मूल्यवर्धन के कारण मोबाइल फोन के निर्यात को बढ़ावा देने में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना की भूमिका संदिग्ध रही है।
इस तरह की आलोचना में निम्नलिखित प्रमुख तत्व शामिल होते हैं: – केवल सीमा शुल्क की ऊंची दर लागू करने के कारण ही मोबाइल का शुद्ध आयात सकारात्मक हो गया है; पीएलआई योजना के तहत किए जाने वाले प्रोत्साहन का भुगतान भारत में होने वाले मूल्य वर्धन से अधिक हो सकता है; पीएलआई योजना की घोषणा के बाद से भारत आयात पर निर्भर हो गया है और इस बात का नए सिरे से मूल्यांकन करने की जरूरत है कि पीएलआई योजनाओं के तहत नौकरियां सृजित की गई हैं या नहीं और ऐसी नौकरियों के लिए संबद्ध लागत क्या रहीं हैं। तर्क के ये बिंदु काफी हद तक गलत हैं, जैसाकि निम्नलिखित विस्तृत व्याख्या से स्पष्ट है:
सीमा शुल्क नीति में बदलाव उत्पादन और निर्यात संबंधी घरेलू क्षमताओं को बढ़ाने की एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। वर्ष 2015 की तुलना में, अब भारत में उपयोग किए जा रहे 99.2 प्रतिशत मोबाइल हैंडसेट भारत में ही निर्मित हैं।
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पीएलआई के तहत प्रोत्साहन छह प्रतिशत भी नहीं है (यह चरणबद्ध तरीके से दो प्रतिशत से भी कम हो जाएगा) और यह केवल वृद्धिशील उत्पादन पर लागू है। पीएलआई योजना के लाभार्थियों की बाजार हिस्सेदारी जहां मात्र 20 प्रतिशत थी, वहीं वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान मोबाइल फोन के निर्यात में उनकी भागीदारी 82 प्रतिशत थी। विश्लेषणों से यह पता चलता है कि मॉडल और जटिलता के आधार पर मोबाइल में घरेलू मूल्यवर्धन 14-25 प्रतिशत के बीच है।
चार्जर, बैटरी पैक, हेडसेट, मैकेनिक्स, कैमरा मॉड्यूल, डिस्प्ले असेंबली से जुड़ी सब-असेंबली एवं आपूर्ति श्रृंखला के मामले में ठोस विकास देखा जा रहा है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को भारत में स्थानांतरित किए जाने के अलावा पश्चिमी यूरोप, अमेरिका और विकसित एशिया सहित निर्यात के लिए नए बाजारों का समावेश किया गया है। घटकों से जुड़े इकोसिस्टम में भी सकरात्मक बदलाव दिखाई दे रहे हैं। इस इकोसिस्टम में टाटा जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां प्रवेश कर चुकी हैं और इस प्रकार, इस तरह के नीतिगत हस्तक्षेप से पैदा होने वाली बाह्यताएं महत्वपूर्ण हो गई हैं।
हमें इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि पीएलआई योजना के अभाव में मोबाइल एवं उसके घटकों के आयात का क्या हश्र हुआ होता और जैसाकि अन्य देशों के अनुभवों से स्पष्ट है, इनकी आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने में कितना समय लगा होता। चीन ने 25 वर्षों में 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग तैयार किया है, लेकिन अभी भी उसके पास सेमीकंडक्टर्स, मेमोरी और ओएलईडी डिस्प्ले जैसे स्मार्टफोन के प्रमुख घटकों के निर्माण की क्षमता का अभाव है। ये घटक मिलकर स्मार्टफोन के मूल्य का 45 प्रतिशत होते हैं। वर्ष 2022 में चीन का इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात 650 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। कुल 15 वर्षों के बाद, वियतनाम के पास 18 प्रतिशत मूल्यवर्धन के साथ 140 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग है। इन दोनों देशों के अनुभव घरेलू मूल्यवर्धन को बढ़ाने के लिए पैमाने के महत्व को रेखांकित करते हैं। विशेष रूप से निर्यात के संदर्भ में। कई आलोचनात्मक रिपोर्टें नीतिगत हस्तक्षेप की एक ठहरी हुई तस्वीर पेश करती हैं, जबकि इसका परिप्रेक्ष्य बहुआयामी होना चाहिए।
किसी को भी इस तथ्य की सराहना करनी चाहिए कि इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के एक मजबूत इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के क्रम में, उत्पादन प्रक्रिया के विभिन्न तत्व स्थानीयकरण के विभिन्न चरणों में हैं। प्रारंभिक ध्यान जहां भारत में बड़े पैमाने पर मोबाइल फोन की असेंबली को आकर्षित करने पर रहा है, वहीं अगला चरण घटकों के स्थानीयकरण के साथ उत्पादन मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने की दिशा में होगा। अधिकांश आलोचनात्मक रिपोर्टों में इस प्रगतिशील बदलाव की सूक्ष्म समझ नहीं दिखाई दे रही है।
भारत सरकार ने भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन एंड मैन्यूफैक्चरिंग (ईएसडीएम) के वैश्विक केन्द्र के रूप में स्थापित करने हेतु एक इकोसिस्टम वाला दृष्टिकोण अपनाया है। वर्ष 2014-15 के दौरान, न्यूनतम मूल्यवर्धन एवं उच्च आयात निर्भरता के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन 37 बिलियन अमेरिकी डालर का था। पिछले नौ वर्षों में, भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में महत्वपूर्ण प्रगति की है जो 2022-23 में (उद्योग जगत के अनुमानों के अनुसार) लगभग तीन गुना बढ़कर 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, निर्यात चार गुना बढ़कर 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है और मूल्यवर्धन बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया है। वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 2012 के 1.3 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021-22 में 3.75 प्रतिशत हो गई है।
इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना के शुभारंभ के परिणामस्वरूप, भारत संख्या के मामले में दुनिया में मोबाइल फोन के दूसरे सबसे बड़े निर्माता के रूप में उभरा। मोबाइल फोन का उत्पादन वित्तीय वर्ष 2014-15 में 60 मिलियन से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021-22 में लगभग 320 मिलियन हो गया। वर्ष 2014 में दुनिया का कुल तीन प्रतिशत मोबाइल हैंडसेट निर्माण करने से लेकर इस साल भारत अनुमानित रूप से दुनिया के कुल 19 प्रतिशत मोबाइल हैंडसेट का निर्माण करेगा। मूल्य की दृष्टि से मोबाइल फोन का उत्पादन वित्तीय वर्ष 2014-15 में 190 बिलियन रुपये से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2022-23 में 3.5 ट्रिलियन रुपये का हो गया है। 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में, स्मार्टफोन का उत्पादन 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का है और उसका निर्यात 11.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का है। इस तथ्य को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि भारत में मोबाइल का उत्पादन मजबूत होने के साथ-साथ व्यापक होता जा रहा है, जिसमें घरेलू मूल्यवर्धन, रोजगार और आय में वृद्धि शामिल है।
एलएसईएम के लिए पीएलआई योजना ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक 65.62 बिलियन रुपये का निवेश आकर्षित किया है, जिससे कुल 2.84 ट्रिलियन रुपये मूल्य का उत्पादन हुआ है। इसमें 1.29 ट्रिलियन रुपये का निर्यात शामिल है और 100,000 से अधिक का प्रत्यक्ष रोजगार और लगभग 2,50,000 अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित हुआ है। सभी नई सृजित नौकरियों में महिला रोजगार की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है, जो भारत में औपचारिक क्षेत्र के रोजगार में लैंगिक संतुलन को ठीक रखने में मदद करेगा। वर्ष 2014 के बाद से, इस क्षेत्र में एक मिलियन से अधिक नौकरियों का समावेश किया गया है।
एप्पल के अपने सबसे उन्नत मॉडलों के निर्माण सहित भारत में आईफोन के अपने उत्पादन का विस्तार करने के फैसले के साथ भारत ने इस क्षेत्र में एक आकस्मिक प्रगति की है। अनुमान है कि 2025 तक कुल ऐप्पल आईफोन का एक चौथाई हिस्सा भारत में निर्मित होगा।
निष्कर्ष के तौर पर, पीएलआई योजनाओं की सफलता को रोजगार सृजन, मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि, निर्यात में वृद्धि और निर्यात के क्षेत्र में होने वाले विविधीकरण के साथ-साथ उल्लेखनीय मूल्यवर्धन और कई पीएलआई उत्पादों, विशेष रूप से मोबाइल फोन के क्षेत्र में बढ़ती स्थानीय मूल्य श्रृंखला के निर्माण के रूप में इसके योगदान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।