रामपुर: प्रदेश के बड़े जिलों में नाम रखने वाले देश के सबसे बड़े व्यापारिक मेले लवी में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ सांस्कृतिक वस्तुओं के व्यापार की भी खूब धूम देखने को मिली। इस बार अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में देव वाद्य यंत्र और देव मूर्तियों के खरीददारों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। इसका एक प्रमुख कारण कोरोना जैसे महामारी के बाद लोगों में देवी देवी देवताओं में आस्था बढ़ना माना जा रहा है। पुश्तैनी देव वाद्य यंत्र एवं देवी देवताओं की मूर्तियां हाथ से बनाने वालों के लिए अंतरराष्ट्रीय लवी मेला प्रमुख खरीद-फरोख्त का केंद्र होता है। इस धंधे से जुड़े लोग साल भर वाद्य यंत्र एवं मूर्तियां आदि का निर्माण करने में लगे रहते है ताकि लवी मेले में अधिक से अधिक माल बेच कर अपना रोजी चला सके। इस धंधे से जुड़े लोगो ने बताया आधुनिकता की दौड़ में बीच में लोगो में देव वाद्य यंत्रो और मूर्तियों की ओर रुझान काम हुआ था। लेकिन कोरोना महामारी के बाद फिर से लोगों में देवस्थान बढ़ने लगी है। जिस कारण इस बार उनका कारोबार एवं खरीद उपरोक्त आशा अनुरूप चल रहा है। ऐसे में देवताओ से जुड़े सामान ले कर लवी में आने वाले खुश है।
तो वहीं कुल्लू भुंतर से आए डोला राम सोनी ने बताया वह अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में करीब 26 वर्षों से आ रहे हैं। मेले में वह ढोल, करनाल, रन सिंह , व मूर्तियां लेकर लेकर आये हैं। लवी मेले में उनका सामान काफी अच्छा बिक रहा है ,लोग दूर-दूर से इन्हें लेने आते हैं। इस बार लवी मेले में काफी अच्छा काम चल रहा है। उन्होंने बताया ढोल का रेट 13 से 15 हजार ,करनाल का रेट 16 से 19 हजार है। नरसिंघे का रेट भी सोलह से उन्नीस हजार , बाना कसल चौदह हजार , बाना चार हजार , अष्ट धातु की मूर्ति
50 हजार तक।
इसके अलावा लोतम सोनी मंडी सराज बाली चौकी के रहने वाले है , उनका कहना है कि दादा परदादा से यानी खानदानी उनका काम देवी देवताओं के मूर्तियां व वाद्य यंत्र बनाना है। उन्होंने बताया कि अब लोगों का रुझान देवी देवताओ कीओर बड़ा है। देवी देवताओ को अब लोग ज्यादा मानने लगे है। इस से देव वाद्य यंत्र व मूर्तियों की डिमांड बढ़ रही है।
मंडी बाली चौकी से आये नेत्र सिंह बताया साल भर वे हाथो से देव वाध्ययंत्र और मूर्तियों को बनाने के काम में लगे होते है। उस के बाद लवी मेले में यह सामान बेचने आते है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम को कर रहे हैं।
रामदास सोनी ने बताया हमारे बुजुर्ग भी यही काम करते थे और हम भी इसी काम को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने बताया कि देव वाद्य यंत्र व मूर्तियां वे हाथों से बनाते हैं।