एपीजी शिमला विश्वविद्यालय  में विद्यार्थियों को सुखी जीवन जीने की कला पर दिया व्याख्यान

आदर्श हिमाचल ब्यूरो 

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शिमला। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत सारे संघर्ष होते रहते हैं। कुछ लोग जीवन जीते हैं, कुछ जीवन बिताते हैं। कुछ उसको काटते हैं तो कुछ का जीवन यों ही काल बीतने के साथ बीत जाता है। हरेक का जीने का अंदाज और माध्यम अलग-अलग है। रह-रहकर सवाल कौंधता है कि किस तरह से और कैसा जीवन जीएं! जिंदगी का गणित गणना की तरह परिणामी नहीं होता और बहुधा उसे हल करने का प्रयास होता है। मंगलवार को इसी तरह जीवन से जुड़े सही और सुखी जीवन जीने की कला विषय पर एपीजी शिमला विश्वविद्यालय की सभागार में  प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय संस्थान पानीपत हरियाणा से पधारे आध्यात्मिक गुरु भारतभूषण ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों को व्याख्यान दिया।

 

व्याख्यान से पूर्व एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के चांसलर इंजीनियर सुमन विक्रांत, प्रो-चांसलर प्रो. डॉ. रमेश चौहान, रजिस्ट्रार डॉ. अंकित ठाकुर और डीन एकेडेमिक्स प्रो. डॉ. आनंद मोहन शर्मा ने आध्यात्मिक गुरु भारतभूषण का पुष्पगुच्छ भेंटकर स्वागत किया।  आध्यात्मिक गुरु भारतभूषण के व्यख्यान से पहले प्रो-चांसलर पूर्व में वाईस-चांसलर रहे प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने आध्यात्मिक गुरु भारतभूषण का एपीजी विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों और शिक्षकों को कर्मसाधना व विद्यासाधना के साथ आध्यात्मिक ज्ञान से जीवन में सफलता और हमेशा सुखी और निरोग व बुराइयों से मुक्त जीवन जीने के प्रेरक प्रसंग बताने के लिए विश्वविद्यालय में पधारने के लिए  उनका धन्यवाद किया।
आध्यात्मिक गुरु भारतभूषण  ने विद्यार्थियों और शिक्षकों  को हमेशा सुखी व प्रसन्नचित जीवन जीने की कला के कई गुर सिखाए जिनमें सात मुख्य गुर बताए।  उन्होंने कहा कि हम हर किसी काम को करने के लिए स्ट्रेस में रहते हैं या कभी कहते हैं स्ट्रेस मत लेना, ,क्या यह कहने मात्र से स्ट्रेस खत्म हो जाएगा? भारतभूषण ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि वास्तव में जीवन एक रेस है, जिसमे सद्भावना, साकारात्मक सोच  और साकारात्मक दृष्टिकोण से ही एक दूसरे को खुशी मिल सकती है। भौतिक तरक्की के चक्कर मे हम अपनी खुशी खो बैठते है, जबकि खुशी मन की स्तिथि पर निर्भर करती  है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की दौड़ में हम आज इंद्रियों के गुलाम हो गए हैं।
साधनों के ऊपर निर्भर हो गए हैं। हमें साधनों का गुलाम नहीं बल्कि उनका मालिक बनना है। तभी हम आध्यात्मिक सुख की ओर जा सकते हैं और यही आध्यामिकता  का चमत्कार भी  है। यह सब संकल्प से सिद्धि की ओर जाकर ही हो सकता है।
परमात्मा और आत्मा के गूढ रहस्य को उजागर करते हुए  भारतभूषण ने कहा कि हम अपनी आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए हर विपरीत स्थिति में भी शांत और स्थिर मन और चित को बनाए रखें। हमें कोई भी कष्ट दे या बद् दुआ दे परंतु हम उसे बद दुआ देने की बजाय उसे दुआ दें और दुआ रूपी मरहम से बददुआ के घांव को सहलाएं और भरें। क्योंकि मनुष्य के  संस्कार किसी को दुख देने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा से आत्मा का मिलन ही आध्यात्मिक योग है और इसके लिए हमें जीवन में शुद्ध संस्कारों और साकारात्मक मन का निर्वहन करना होगा और तन-मन और अन्न-जल की शुद्धता का ध्यान रखना होगा।
उन्होंने  कहा कि आज के घोर कलयुग में मनुष्य अपनी आत्मिक स्थिति से विमुख होकर सोल कॉन्शियस हो गए हैं, सामने वाले से उसका ओहदा देखकर उससे बात करते हैं, यही हमारे अशांत व दुखी होने का कारण है। आज विश्व में राष्ट्रों के बीच लड़ाई का यही मुख्य कारण भी है।
उन्होंने कहा कि अच्छी सोच के साकारात्मक शास्त्र द्वारा मनुष्य के में नाकारात्मक सोच को खत्म किया जा सकता है, जैसे कि सोच, बोल व कर्म में हम करेंगे वही व्यवहार के रूप में हमारे सामने आएगा इसलिए यह प्रश्न निराधार है कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों  से अनुरोध किया कि अपनो को व स्वयं को खुश रखने व शांत रखने के लिए आध्यात्मिक योग  का अभ्यास करें और साकारात्मक दृष्टिकोण रखने से सफलतापूर्ण और हमेशा खुशहाल जीवन जिएं।
कार्यक्रम के अंत में एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के डीन एकेडेमिक्स प्रो. डॉ. आनंद मोहन ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए कहा कि आध्यात्मिक गुरु भारतभूषण के द्वारा व्याख्यान में  प्रेरक व जीवन जीने के सदविचार, सद व्यवहार, सदगुण विद्यार्थियों सहित आम मनुष्य के लिए हमेशा सुखी जीवन जीने का संदेश देते हैं और आज की आपाधापी में आज मानवजाति को ऐसे गुणो को ग्रहण करने की जरूरत है।