आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले की धज्जियां उड़ाकर शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, कांगड़ा के टांडा स्थित राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अन्य मेडिकल कॉलेजों में दिव्यांग विद्यार्थियों से फीस वसूली जा रही है।
दिव्यांगों के लिए कार्य कर रही संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने इस बारे में प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर तुरंत संज्ञान लेने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि यदि 15 दिन के भीतर संबंधित मेडिकल कॉलेजों ने दिव्यांग बच्चों की फीस वापस नहीं की तो वह हाईकोर्ट में अदालत की अवमानना का केस दायर करेंगे। अजय श्रीवास्तव ने कहा कि उनकी जनहित याचिका पर 4 जून 2015 को जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ ने अपनी फैसले में स्पष्ट कहा था कि दिव्यांग विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय स्तर तक निशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने कहा था कि विश्वविद्यालय स्तर तक दिव्यांग बच्चों से कोई भी फीस वसूल नहीं की जाएगी। अदालत के फैसले में टांडा मेडिकल कॉलेज और आईजीएमसी शिमला का तो साफ़ तौर पर उल्लेख है।
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इसके बावजूद जून 2015 के बाद 9 वर्षों में मेडिकल कॉलेज इंजीनियरिंग कॉलेज सैकड़ों दिव्यांग विद्यार्थियों से गैरकानूनी ढंग से फीस वसूल चुके हैं। उन्होंने कहा कि वे समय-समय पर टांडा मेडिकल कॉलेज और आईजीएमसी शिमला के प्रबंधन के ध्यान में हाईकोर्ट का फैसला ला चुके हैं। इसके बावजूद हाईकोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन करके एमबीबीएस एवं अन्य कक्षाओं के विद्यार्थियों को फीस देने पर मजबूर किया जा रहा है।
अजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों समेत सभी चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग विद्यार्थियों को हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक मुफ्त शिक्षा दी जानी चाहिए। इसके बावजूद सरकारी मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक, नर्सिंग कॉलेज, और इंडस्ट्रियल ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट (आईटीआई) आदि संस्थान दिव्यांग बच्चों से फीस चार्ज कर रहे हैं। यह बेहद गंभीर मामला है जो बताता है कि नौकरशाही किस तरह दिव्यांग बच्चों एवं अन्य कमजोर वर्गों के अधिकारों का हनन कर रही है।