आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। ईश्वर ने धरती को प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है ।इस दृष्टि से हमारा प्रदेश विशेष स्थान रखता है। धरती पर स्वर्ग की अनुभूति कराने वाली, मनोरम तलहटियों और सुरम्य वादियों से परिपूर्ण, प्राकृतिक छटा बिखेरती, भिन्न-भिन्न जड़ी -बूटियों से भरपूर चांशल घाटी शिमला जिले के चिडगांव से लगभग 4 0 किलोमीटर दूर है ।पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखने वाली यह घाटी अत्याधिक सुंदर है । इसे दुर्गम क्षेत्र डोडरा-कवार का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है । एक बार देख लेने पर बार-बार देखने की उत्सुकता बनी रहती है- इसमें कोई अत्युक्ति नहीं । ईश्वरीय देन को यथावत बनाए रखना हमारा कर्तव्य है।
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प्रकृति की अनुपम धरोहर को स्थानीय लोग जी जान से संभाल रहे हैं ।परंतु दुर्भाग्य का विषय यह कि कोरोना रूपी महामारी से संतप्त मानव आज भी प्रकृति का सम्मान नहीं कर रहा । समय-समय पर प्रकृति भिन्न- भिन्न रूप में मानव को चेतावनी दे रही है । परंतु दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ लोग अपने दायित्वों को नहीं समझ पा रहे है।और इस दुर्भाग्यपूर्ण व्यवहार से समस्त मानव जाति का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है । हम सभी को प्रकृति की चेतावनियों से सबक लेना चाहिए ।
कुछ समय उपरांत सब कुछ विस्मृत कर मनुष्य के भीतर का दैत्य प्रकट होने लगता है। अपनी बुराइयों पर वह अभिमान और अच्छाइयों का उपहास करने लगता है। उसकी यह नादानियां फिर किसी नई आपदा या त्रासदी को निमंत्रण न दे बैठे इसके लिए जरूरत है प्रशासन को हस्तक्षेप कर कुछ कड़े कदम उठाने की । सर्वविदित है पापनाशिनी मुक्तिदायिनी मां गंगा मनुष्य के इसी कुकृत्य के कारण ही दूषित हुई ।जहां -जहां भी तीर्थ स्थान इस प्रकार तिरस्कृत हुए है- दिव्य शक्तियां लुप्त हुई है।
चांशल घाटी प्रकृति की एक अप्रतिम प्रतिमा है। कुछ गैर जिम्मेदार पर्यटक यहां आकर इस घाटी को अस्वचछ और अपवित्र कर रहे हैं।यकीनन यह लोग प्रकृति प्रेमी नहीं, न ही प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाने के उद्देश्य से आते हैं । उनका प्रयोजन मौज मस्ती करना होता हैं। मदिरा पान कर बोतलों को तोड़कर गंदगी फैलाना अपनी शान समझते हैं।मान्यता के अनुसार जब -जब इस पवित्र स्थान पर मदिरापान का बोलबाला बढ़ता है तो उस क्षेत्र के लोगों को दैव्य दोष के कारण प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है ।कोई भी प्राकृतिक सुंदरता का पुजारी ऐसी हरकतें नहीं करेगा । प्रकृति के रुष्ट होने का इन्हें जरा भी भय नहीं । जब जब कुदरत का तिरस्कार हुआ है मां प्रकृति सबक सिखाने हेतु तत्पर रही है।
इसे स्वच्छ रखने का बीड़ा उठाया महिला मंडल अध्यक्षा रितू एवं महासचिव प्रतिभा देवी की अगुवाई में स्थानीय पंचायत के महिला मंडल शीलादेश की महिलाओं ने ।संपन्न परिवारों से संबंध रखने वाली यह महिलाएं सप्ताह में दो बार यहां जाकर सफाई करती हैं। इन जागरूक महिलाओं ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई जिससे उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए किसी पर निर्भर न होना पड़े । घर से काफी दूर होने के कारण चांशल घाटी के लिए संपूर्ण दिन के लिए एक विशेष वाहन की आवश्यकता रहती है ।जिसके लिए धन की अवश्यकता महसूस हुई ।
अतः उन्होंने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को पूरा करने व अपने स्वाभिमान को मद्देनजर रखते हुए घाटी जाने वाले प्रत्येक वाहन मालिक से पचास रुपये मात्र शुल्क लेना प्रारंभ किया । लोगों ने इनकी इस पहल का स्वागत एवं समर्थन किया और न केवल शुल्क बल्कि अधिक आर्थिक सहायता की पेशकश भी की। सफाई अभियान के दौरान एक समाजसेवी महिला ने पर्यावरण के महत्व को समझाते हुए जलपान करवाकर उनकी हौसला अफजाई करते देखा गया । जिससे सकारात्मक कार्य करने वाले लोगों का मनोबल बढ़ता है। लेकिन कुछ ऐसे लोगो से भी सामना हुआ जिनका व्यवहार इतना नकारात्मक था जिससे इनके स्वाभिमान और सोच को आघात पहुंचा ।
सफाई शुल्क देना तो दूर उल्टे अपने रुतबे का रोब दिखाकर अभद्र व्यवहार करते दिखे। जबकि देखने में आया है कि यही जमात अपने संवैधानिक कर्तव्यों की खुल्लम खुला धज्जियां उड़ाते हैं ।निसंदेह यह किसी प्रकृति पूजन से कम नहीं । हम कब तक ऋषि-मुनियों एवं वेदों द्वारा दिखाए गए प्रकृति प्रेम का व्याख्यान दुनिया के समक्ष करते रहेंगे।
किसी भी इतिहास की शान उसके द्वारा स्थापित सर्वोच्च मूल्यों के अनुसरण तथा संरक्षण करने से है। शिक्षा प्रत्येक नागरिक को ज्ञान दे सकती है उसे संस्कारों में लाना समाज एवं रहनुमाओं का कर्तव्य है। इन महिलाओं का यह प्रयास हम सबके लिए एक मिसाल है । शासन- प्रशासन तथा प्रत्येक व्यक्ति को इन्हें प्रोत्साहित कर इनकी मुहिम में कंधे से कंधा मिलाने की अवश्यकता है ।