श्राद्ध स्पेशल: पितरों का तर्पण और श्राद्ध का महत्व, जानिए कब शुरू हो रहे हैं और कितने तरह के होते हैं श्राद्ध

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  1. आदर्श हिमाचल ब्यूरो
आनी: हर वर्ष पूर्वजों को तर्पण और उनके प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करने लिए हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक का समय पितृपक्ष कहलाता है। पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितरलोक से धरती पर अपने प्रियजनों  के पास आते हैं। ऐसे में पितृ पक्ष पर उनके प्रति सम्मान और आदरभाव दिखाने के लिए उन्हें तर्पण दिया जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष पर श्राद्ध कर्म करने पर पितृदोषों से मुक्ति मिल जाती है। पितृपक्ष में जब पितरदेव धरती पर आते हैं उन्हें प्रसन्न कर फिर से पितरलोक में विदा किया जाता है।
ज्योतिष एवं कर्मकांड आचार्य  पण्डित मोहेंद्र कुमार शर्माआचार्य श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगने आए तो उसे खाली हाथ नहीं जाने दें। मान्यता है कि पितर किसी भी रूप में अपने परिजनों के बीच में आते हैं और उनसे अन्न पानी की चाहत रखते हैं।गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ इन्हें श्राद्ध पक्ष में मारना नहीं चाहिए, बल्कि इन्हें खाना देना चाहिए। मांसाहारी भोजन जैसे मांस, मछली, अंडा के सेवन से परहेज करना चाहिए।

पूर्णिमा का श्राद्ध

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु पूर्णिमा को हो तो उसका श्राद्ध भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को करना चाहिए।

भरणी का श्राद्ध

चतुर्थी तिथि पर भरणी नक्षत्र होने के कारण भरणी का श्राद्ध कहा जाता है। भरणी नक्षत्र में पितरों का पार्वण श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। नवमी तिथि को सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है।

संन्यासियों का श्राद्ध

संन्यासियों का श्राद्ध पार्वण पद्धति से द्वादशी में किया जाता है। भले ही इनकी मृत्यु तिथि कोई भी क्यों न हो।

मघा का श्राद्ध

 मघा नक्षत्र होने के कारण मघा का श्राद्ध होता है। जिनकी जन्मकुंडली में पितृदोष के कारण घर परिवार में और पति पत्नी में क्लेश अशांति हो तो वह शांत हो जाता है। घर में सुख शांति रहती है।

अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध

वाहन दुर्घटना, सांप के काटने से, जहर के खाने से अकाल मृत्यु के कारण जिसकी मृत्यु हुई हो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए। चतुर्दशी तिथि में मरने वालों का श्राद्ध चतुर्दशी में नहीं करना चाहिए। किसी व्यक्ति की मृत्यु पूर्णिमा को हो तो उसका श्राद्ध भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को करना चाहिए।

श्राद्ध कैसे करें

श्राद्ध करने की सरल विधि है कि जिस दिन आप के घर श्राद्ध तिथि हो उस दिन सूर्योदय से लेकर 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध-तर्पण आदि करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लें। श्राद्ध करने में दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, तिल अभिजित मुहूर्त मुख्य रूप से अनिवार्य तो है ही तुलसीदल से भी पिंडदान करने से पितर पूर्णरूप से तृप्त होकर कर्ता को आशीर्वाद देते हैं। तर्पण के समय सर्वप्रथम निमंत्रित ब्राह्मण का पैर धोना चाहिए। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए।
इस साल पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू हो रहे हैं. अंतिम श्राद्ध यानी अमावस्या श्राद्ध 17 सितंबर को होगा.
पूर्णिमा श्राद्ध -1 सितंबर 2020  9:39 के बाद मंगलवार
प्रतिपदा श्राद्ध -2 सितंबर 10:52 के बाद बुधवार
प्रतिपदा श्राद्ध -3 सितंबर 12:27 तक वीरवार
द्वितीय श्राद्ध -4 सितंबर 14:24 तक शुक्रवार
तृतीय श्राद्ध -5 सितंबर 16:39 तक शनिवार
चतुर्थ श्राद्ध -6 सितंबर रविवार
पंचमी श्राद्ध -7 सितंबर सोमवार
षष्ठी श्राद्ध -8 सितंबर मंगलवार
सप्तमी श्राद्ध -9 सितंबर बुधवार
अष्टमी श्राद्ध -10 सितंबर वीरवार
नवमी श्राद्ध -11 सितंबर शुक्रवार
दशमी श्राद्ध -12 सितंबर शनिवार
एकादशी श्राद्ध -13 सितंबर रविवार
द्वादशी श्राद्ध -14 सितंबर सोमवार
त्रयोदशी श्राद्ध -15 सितंबर मंगलवार
चतुर्दशी श्राद्ध -16 सितंबर बुधवार
अमावस्या श्राद्ध -17 सितंबर वीरवार (सर्वपितृ अमावस्या)

क्यों करें श्राद्ध?

आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही अक्सर इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है । प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है. एकल परिवारों के इस युग में कई बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के नाम तक नहीं मालूम होते हैं । ऐसे में परदादा या परनाना के नाम पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है. अगर आप चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम बना रहे तो श्राद्ध के महत्व को समझना बहुत जरूरी है. सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वहन अवश्य करें।
श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है । दरअसल, श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. इन 15 दिनों के दौरान उन दिवंगत आत्माओं का स्मरण किया जाता है, जिनके कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है। इस दौरान उनकी कुर्बानियों व योगदान को याद किया जाता है। इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वहन कर सकें।
हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं निभाई जाती रहें । श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए।
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में पितृ पक्ष श्राद्ध मनाए जाते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें। ब्रह्म पुराण के अनुसार, जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए, वह श्राद्ध कहलाता है । श्राद्ध के माध्यम से पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है । पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है ।
 सौजन्य,:- पण्डित मोहेंद्र कुमार शर्मा
ज्योतिष समाधान और परामर्श
सम्पर्क सूत्र 9418383016