डॉ. आशुतोष कुमार, अस्सिटैंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग, आईआईटी ,मंडी के कार्य से सम्बंधित कुछ प्रमुख पहलु :

आदर्श हिमाचल ब्यूरो ,

Ads

 

मंडी। शोधकर्ताओं ने किया रेलमार्गों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रभाव को कम करने की रणनीतिआईआईटी मंडी अवं डरहम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक शोध किया जिसमे उन्होंने जलवायु परिवर्तन से रेलमार्गों पर होने वाले प्रतिकूल प्रभावों के अध्ययन के लिए एक नए यंत्र का निर्माण किया।

निर्मित यंत्र का निर्माण इस तरीके से किया गया ताकि वह रेलमार्गों को बिछाने में प्रयोग होने वाली सघन मिट्टी के अंदर सक्शन को नाप सके और यह कार्य मिट्टी के सैंपल पर प्रयोगशाला में इस्तेमाल होने वाले साइक्लिक त्रीआक्सीअल यंत्र के साथ संपन्न किया जा सके।
इस कार्य को अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग द्वारा प्रकाशित एक प्रतिष्ठित पत्रिका जिसका नाम जर्नल ऑफ़ जिओटेक्निकल एंड जिओएन्वॉयर्नमेंटल इंजीनियरिंग है में भी प्रकाशित किया जा चुका है। मुख्य लेखक के रूप में आईआईटी मंडी से डॉ. आशुतोष कुमार जो कि स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग में अस्सिटैंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है, यूनिवर्सिटी ऑफ़ पोर्ट्समाउथ, यूनाइटेड किंगडम से अस्सिटैंट प्रोफेसर डॉ. अर्श अज़ीज़ी एवं डरहम यूनिवर्सिटी यूनाइटेड किंगडम के इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत प्रोफेसर डॉ. डेविड ज्यॉफ्री टोल के साथ मिलकर इस शोध को कार्यान्वित किया।

रेलमार्गों की आधारभूत संरचना में ट्रैकबेड को बिछाने के लिए सघन मिट्टी से बनाये गए तटबंध का उपयोग किया जाता है, जिसका काम रेल चालन के दौरान रेल पटरी से आने वाले भार को संभालना होता है। पारम्परिक रूप से अपनायी जाने वाली तटबंध निर्माण प्रक्रिया केवल रेलों के गमन से उत्त्पन हुए भार को संभालने के लिए ही पर्याप्त जानकारी प्रदान करती है। लेकिन बारिश एवं सूखे के बदलावों की वजह से तटबंध की मिट्टी में पानी की मात्रा बदलती रहती है, जिसकी वजह से सक्शन भी बदलता है और मिट्टी की क्षमता पर भी असर पड़ता है। इन सब पहलुओं का पारम्परिक निर्माण प्रक्रिया में ज्यादातर उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन बदलती जलवायु के कारण बारिश और सूखे की प्राकृतिक गतिविधियां और भी ज्यादा गंभीर होती जा रही है जिसके फलस्वरूप यातायात संरचना के सुचारु कार्यान्यवन के सामने नई चुनौतियाँ उत्त्पन्न हो गयी है।

डॉ. आशुतोष कुमार, अस्सिटैंट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग, आईआईटी ,मंडी के कार्य से सम्बंधित कुछ प्रमुख पहलु :
जलवायु परिवर्तन एक चुनौती की तरह हमारे सामने खड़ी है जो आजकल भारी बारिश एवं सूखे का प्रमुख कारण भी है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर, सतत एवं टिकाऊ परिवहन की आधारभूत संरचना प्रणाली विकसित करने के लिए आईआईटी मंडी अवं डरहम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम मिलकर शोध कार्य में लगे हुए है। सघन मिटटी जिसका इस्तेमाल तटबंध बनाने में किया जाता है ज्यादातर असंतृप्त अवस्था में पायी जाती है। वातावरण में होने वाले बदलावों की वजह से इसकी क्षमता कमजोर होती जाती है, ऐसा बारिश के मौसम में पानी के मिट्टी में प्रवेश एवं सूखे के समय में बहार निकलने की वजह से होता है। बार-बार गुजरने वाले रेल भार असंतृप्त सघन मिटटी की क्षमता को घटाने वाली प्रक्रिया को और भी विकट बना देते है। इन सभी वजहों से रेल पथ का प्रदर्शन प्रभावित होता है और यह सब इसकी पूर्ण असफलता का कारण भी बन सकता है।

जलवायु परिवर्तन की परिस्थिति में यह अतिआवश्यक हो जाता है कि वातावरण द्वारा लाये गए बदलाव जिनको एन्वॉयरन्मेंटल लोडिंग भी कह सकते हैं और रेल के गुजरने वाले भारों का असंतृप्त सघन मिट्टी की क्षमता पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को एक साथ अध्ययन किया जाए। इसी वहज से साइक्लिक त्रिएक्सियल यंत्र जो की ज्यादातर केवल भारों के द्वारा लायी गयी विकृतियों के मापन के लिए ही इस्तेमाल होता है, में कुछ जरुरी बदलाव किये गए ताकि मिट्टी में सक्शन को भी नापा जा सके। इस तरह से वातावरण के प्रतिकूल प्रभावों के असर को रेलमार्गों की आधारभूत सरंचना डिज़ाइन प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाना संभव हो सका। इस अध्ययन में प्रयोग हुई मिट्टी के सैंपल को ६५० किलोमीटर लम्बी रेलवे कोल् लाइन से लाया गया जो की लगभग ४० कोयले की खदानों को रिचर्ड्स बे कोल् टर्मिनल, साउथ अफ्रीका से जोड़ती है।

अध्ययन कार्य का व्याख्यान करते हुए डॉ. आशुतोष कुमार कहते हैं कि “यह शोध अपने आप में अनोखा इसलिए है क्योंकि असंतृप्त सघन मिट्टी जिसका इस्तेमाल रेलवे तटबंध बनाने में किया जाता है

उसकी सतत कार्यान्वहं क्षमता पर रेल भारों के साथ-साथ एन्वॉयरन्मेंटल लोडिंग के प्रभाव को भी समझा जा सकता है। इसके लिए जो यंत्र बनाया गया है उसमे एक उच्च क्षमता वाले टेंसिओमेटेर जिसको डरहम यूनिवर्सिटी ने निर्मित किया है, का इस्तामल किया गया है जिसका काम सक्शन को नापना है। लगाए गए भारों के कारण मिट्टी के सैंपल में होने वाली विकृतियों को मापने के लिए अन्य यंत्र भी लगाए गए हैं। प्रयोगशाला में किए जाने वाले शोध को व्यावहारिक रूप देने के लिए तीन अलग-अलग मसौदे तैयार किये गये जिसमें सबसे पहले केवल रेल के भार के असर को समझा गया। इस स्थिति के दौरान मिट्टी के सैंपल को पूरी तरह से पानी से तृप्त कर दिया गया था जैसा की किसी भारी बारिश या बाढ़ के दौरान देखने को मिल सकता है।

दूसरे मसौदे में यह समझा गया की असंतृप्त सघन मिट्टी किस तरह से अपनी क्षमता को प्रदर्शित करती है जब उसपर केवल रेल के भार को लगाया जाता है। तीसरे और अंतिम मसौदे में रेल के भार और बारिश की अवस्था को एक साथ मिट्टी के सैंपल पर लगाया गया, यह स्थिति समकक्ष है जब एक रेल बारिश के दौरान चल रही हो। इन सभी मसौदों से यह समझने की कोशिश की गई कि असंतृप्त सघन मिट्टी की क्षमता पानी से गीला होने और सूखने की प्रक्रिया में किस प्रकार से प्रभावित होती है। शोध में पाया गया की असंतृप्त सघन मिट्टी की क्षमता में गिरावट और इसका विघटन बारिश के दौरान सक्शन के कम होने से बहुत सम्बंधित होता है।”

 

शोध से यह भी स्पष्ट हुआ कि असंतृप्त सघन मिट्टी की क्षमता में गिरावट और इसका विघटन मिट्टी पर हुए मौसमी बदलावों से गहन सम्बन्ध रखता है। विकसित किए गए यंत्र का इस्तेमाल किसी भी तरह के मिट्टी के सैंपल पर शोध करने के लिए किया जा सकता है चाहे वह प्रयोगशाला में हो या फिर वास्तविक प्रयोग में। इस तरह के शोध पर आधारित निर्माण प्रणाली सतत एवं टिकाऊ परिवहन की आधारभूत संरचना विकसित करने के लिए जरुरी जानकारी प्रदान कर सकती है जोकि जलवायु परिवर्तन द्वारा लायी गयी चुनौतियों का सामना करने की जरुरी समझ प्रदान करती है।