आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। कोविड की कमर-तोड़ मार और पैसों की तंगी से जूझती भारत की तमाम बिजली वितरण कम्पनियां और राज्य सरकारें सही नीतिगत फैसलों से 1 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये तक बचा सकती हैं।
इस बात का ख़ुलासा होता है “क्लाइमेट रिस्क होराइजन” नामक संस्था की एक ताज़ा रिपोर्ट में। इस रिपोर्ट की मानें तो यह बचत पुराने और अक्षम कोयला पावर प्लांट्स की जगह बेहतर आउटपुट देने वाले प्लांट्स की अनयूज़्ड क्षमता और रिन्यूएबिल एनर्जी के प्रयोग से सस्ती बिजली पैदा कर हासिल की जा सकती है।
क्लाइमेट रिस्क होराइजन के विश्लेषण के अनुसार इस बचत को व्यावहारिक रूप से एक सच्चाई बनाने और डिस्कॉम रिकवरी के लिए तीन मूल बातों पर ध्यान देना होगा। और वो बातें हैं रिटायरमेंट, रिन्यूएबिल और रैशनलाइजेशन।
इस रिपोर्ट के लेखक आशीष फर्नांडिस कहते हैं, “कोविड 19 ने अर्थव्यवस्था की ऐसी आर्थिक कमर तोड़ी है कि अर्थव्यवस्था 23.9 प्रतिशत से नीचे चली गयी है। ऐसी स्थिति में पुरानी तकनीकों में नया निवेश आत्मघाती फैसला साबित। इन परिस्थितियों में तो राज्य सरकारों और बिजली वितरण संस्थाओं को बचत की सोचनी चाहिए जो पुराने और अक्षम संयंत्रों को बंद कर और उनको बेहतर नए संयंत्र या रिन्यूएबिल ऊर्जा से बदल कर हासिल की जा सकती है।
अपनी इस रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘3Rs for DISCOM Recovery: Retirement, Renewables and Rationalisation’, है, के माध्यम से आशीष आगे बताते हैं कि इस रिपोर्ट में ग्यारह प्रमुख राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह 11 राज्य हैं आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना,उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
यह वह राज्य हैं जहाँ बिजली कम्पनियां 50 प्रतिशत से अधिक का बकाया झेल रही हैं। बचत और रैश्नलाइज़ेश्न के लिए संभावित क्षेत्रों के पहचान करते हुए रिपोर्ट में कम सक्षम नए कोयला प्लांट और 20 साल से पुराने कोयला प्लांट को हटाने की बात की गयी है। 2015 के उत्सर्जन मानदंड को अनुपालन में लाने और लगभग 18000 करोड रुपए के महत्वपूर्ण व्यय को बचाने की नज़र से 36.5 गीगावॉट के पुराने कोयला प्लांट को हटाना ज़रूरी होगा। फ़िलहाल उत्सर्जन मानदंड के अनुपालन की समय सीमा दिसंबर 2022 है। पुराने और कम आउटपुट वाले संयंत्रों की जगह रिन्यूएबिल ऊर्जा के प्रयोग या बाजार से बिजली की सस्ती आपूर्ति के द्वारा वार्षिक सालाना 7000 करोड़ रुपए (5 साल के टैरिफ अवधि पर लगभग 35000 करोड़ रुपए ) बचाए जा सकते हैं, जबकि इन पुराने प्लांट्स से बिजली की आपूर्ति कहीं अधिक महंगी है।
आगे, आशीष कहते हैं, “हमारे विश्लेषण के मुताबिक़ हजारों करोड़ रुपए लगाकर इन प्रदूषण फ़ैलाने वाले संयंत्रों में प्रदूषण कम करने वाले FDG और Low NOx बर्नर लगाने की जगह 2022 तक इन पुराने प्लांट को बंद कर देना अधिक लाभप्रद है। बिजली कम्पनियों की अनिश्चित वित्तीय स्थिति को देखते हुए अतिरिक्त पूँजी लगाना या ऋण वहन करना मुश्किल है। और अंततः यह लागत बिजली की कीमत बढ़ा कर ग्राहक से ही वसूली जाएगी।”
उधर केंद्र सरकार बिजली वितरक कम्पनियों को बिजली उत्पादक कम्पनियों का बकाया भुगतान करने में मदद के लिए 1,00,000 करोड़ रुपए की राशि देने की तैयारी में है। इस फैसले से अस्थाई तौर पर कुछ सुधार होने की उम्मीद है क्योंकि बिजली वितरण कम्पनियों ने फ़िलहाल कोई फैसले नहीं लिए जो इन सुधारों को लम्बे समय तक बनाए रखें।
कोरोना की आर्थिक मार और अनिश्चितता के चलते बिजली संयंत्र अपनी क्षमता से कम स्तर पर काम कर रहे हैं और इस हाल के लम्बे समय तक बने रहने के आसार हैं। लेकिन इस दौर और इन हालात में ग्रिड की स्थिरता बनाये रखने के लिए पुराने और अक्षम संयंत्रों को हटाना फ़िलहाल आसान है।
रिपोर्ट के निम्न तीन अन्य सुझाव हैं जिससे डिस्कॉम और राज्य सरकार लागत को कम करके वित्तीय समस्याओं से निपट सकती हैं:
●निर्माणाधीन प्लांट पर खर्च रोकना:
रिपोर्ट में 14GW वाले राज्य स्वामित्व वाले संयंत्र, जो निर्माण के शुरुआती चरण में है, उनमें बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, और उत्तर प्रदेश राज्य बताए गए हैं। इन पर व्यय रोकने से 92,000 करोड रुपए की बचत की जा सकती है। देश की बिजली अधिशेष स्थिति को देखते हुए सीआरएच विश्लेषकों का कहना है कि लागत का लाभ अब रेन्युब्ल ऊर्जा द्वारा प्राप्त हो रहा है। नए प्लांट की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि न सिर्फ़ इनकी खुद की आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है गिरती डिमांड से, यह राज्य की वित्तीय स्थिति भी खराब कर सकते हैं।
● तय लागत को तार्किक बनाना:
बिजली की कम मांग के बावजूद यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के राज्य ज़्यादा तय कीमत दे रहे हैं। ताजा उपलब्ध टेरिफ ऑर्डर को देखते हुए अनुबंध के पुनर्गठन द्वारा इन तय लागत को युक्तिसंगत बनाकर गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 1,000 करोड़ प्रतिवर्ष और यूपी में 5 000 करोड़ प्रतिवर्ष बचाए जा सकते हैं। अधिकांश उच्च निश्चित लागतें सार्वजनिक क्षेत्र के जनरेटर हेतु देय हैं। इसे देखते हुए अनुबंध का पुनर्गठन और भी स्वाभाविक है।
●धीरे-धीरे सबसे महंगे बिजली संयंत्रों से चरणबद्ध रूप से निर्भरता हटाना:
महंगे बिजली संयंत्रों से चरणबद्ध रूप से निर्भरता हटाने के साथ ही उनकी जगह सस्ते विकल्प लाना औसत राजस्व आवश्यकताओं को कम करने में मदद करेगा। साथ ही 4 रूपए/KWh से ज़्यादा कीमत की बिजली को रेन्युब्ल ऊर्जा या मौजूदा उच्च दक्षता बिजली संयंत्रों से प्राप्त सस्ती बिजली, मतलब 3रुपए/KWh या उससे कम लागत, से बदला जा सकता है। सीआरएच की मानें तो अनुमानतः इन 11 राज्यों में सालाना 55,000 करोड़ की भारी बचत हो सकती है।
मतलब अगर नए बन रहे संयंत्रों पर व्यय रोकने के साथ पुराने अक्षम संयंत्रों को भी बंद कर दिया जाए तो लगभग एक लाख पैंतालीस हज़ार करोड़ रुपए की बचत की जा सकती हैं। वहीँ अगर सिर्फ़ पुराने और अक्षम संयंत्रों को ही बंद किया जाये तो भी यह बचत पचपन हज़ार करोड़ रुपए की होगी।