कारगिल विजय की कहानी, कारगिल योद्धा की जुबानी

शिमला: साल 1999 में कश्मीर की अति दुर्गम पहाड़ियों में बेहद कठिन परिस्थितियों के बीच करीब तीन माह तक चले कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने जिस अदम्य साहस और शौर्य से दुश्मनों को धूल चटाई थी, उसकी मिसाल संसार में और कहीं भी नहीं मिलती. भारत के रणबांकुरों ने अपनी सरजमीं पर धोखे से एलओसी पार कर कब्जा जमाए पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों को जिस बहादुरी से वापिस खदेड़ा था उसे यादकर आज भी हर देशवासी गर्व महसूस करता है, लेकिन कारगिल में विजय हासिल करना इतना आसान नहीं था. 22 साल पूर्व यह भयंकर युद्ध मई 1999 से जुलाई 1999 तक हुआ.

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14, जम्मू और कश्मीर राइफल्स के साथ कैप्टन शामलाल शर्मा उस समय देश की सेवा कर रहे थे. शिमला से लगभग 20 किलोमीटर दूर घनाहट्टी के गांव धमून रहने वाले कैप्टन शामलाल याद करते हुए बताते हैं कि कारगिल के 22 वर्ष गुजर जाने के बाद भी युद्ध की यादें उनके जहन में ताजा हैं. वे बताते हैं कि दोनों देशों के आपसी समझौते के अनुसार छः महीने के लिए सर्दियों में दोनों देशों की सेनाएं अपनी अपनी पोस्ट से पीछे हट जाया करती थी और फिर गर्मियों में वापस अपनी पुरानी पोस्ट पर आ जाया करती थी.

पाकिस्तानियों के नापाक इरादे का पता तब चला, जब सेना की एक पेट्रोल पार्टी पर 3 मई, 1999 को हमला हुआ. 12-13 मई, 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया की अगुवाई वाली पेट्रोलिंग पार्टी पर बजरंग पोस्ट के पास हमला हुआ. 15-16 मई को इसी क्षेत्र में एक और बड़ी पेट्रोल पार्टी भेजी गई जिस पर दुश्मनों का फिर हमला हुआ. 24 मई को कारगिल सेक्टर में धोखे से घुस आए पाकिस्तान के घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया. दुश्मनों की सही संख्या का पता नहीं था. मास्को वैली, द्रास सेक्टर, काकसर और बटालिक क्षेत्र में पाकिस्तान ने नापाक घुसपैठ की. उस समय कैप्टन शामलाल की पलटन 14 जम्मू और कश्मीर राइफल्स 8 माउंटेन डिवीजन में काउंटर इनसर्जेंसी तराल इलाके को घुसपैठियों से पूरा मुक्त करवा चुकी थी. यूनिट का बहुत दबदबा था. 19 मई को कैप्टन शाम लाल की यूनिट ने बिना समय गवाय कारगिल सेक्टर में प्रवेश किया. मास्को और द्रास में 8 माउंटेन डिवीजन और बटालिक में 3 माउंटेन डिवीजन को दुश्मन को पीछे खदेड़ने और काकसर क्षेत्र को दुश्मन के कब्जे से वापस छुड़ाने का जिम्मा उनकी पलटन 14 जम्मू और कश्मीर राइफल्स को दिया गया गया जिसे पलटन ने बखूबी अंजाम दिया.

कैप्टन शामलाल बताते हैं कि

दुश्मन की संख्या का अभी-भी सही अनुमान नहीं था. 18 हजार फीट से भी अधिक ऊंचाई पर काकसर सेक्टर में 14 जम्मू और कश्मीर राइफल्स ही एक मात्र अकेली पलटन थी जिसे 5 हजार मीटर से भी ऊंची पहाड़ियों 19 मई से 19 जुलाई तक रहना पड़ा था. दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरते हुए जहां पहले कोई सैनिक टुकड़ी कभी पहले नहीं पहुंची थी, जबकि कारगिल इलाके में अब हर क्षेत्र में बहुत सारी पलटन चारों दिशाओं में तैनात हो चुकी थी.

24 मई 1999 को कारगिल ऑपरेशन विजय घोषित किया गया. कैप्टन शामलाल की यूनिट का बेस हेडक्वार्टर द्रास सेक्टर थाइस में बनाया गया था. ए-कंपनी को प्वाइंट 4899 और 5000, बी-कंपनी को प्वाइंट 5299 कॉम्प्लेक्स, सी-कंपनी को 5300 कॉम्प्लेक्स और डी-कंपनी को प्वाइंट 5270 के ऊपर दुश्मनों को रोकने और पीछे हटाने का काम सौंपा गया था. दुश्मनों के नापाक इरादों को असफल करना था. आज इन चोटियों को जिमी टॉप, सचिन सेडल और बिष्ट टॉप के नाम से जाना जाता है. अधिक ऊंचाई वाली इन पहाड़ियों को रस्सियों व पहाड़ियों पर चढ़ने वाले साधनों से पहुंच कर मुकाबला किया गया क्योंकि यूनिट पूर्ण डोगरा यूनिट थी. सभी सैनिक डोगरा और पहाड़ी होने के कारण पहाड़ों पर चढ़ने का बहुत अनुभव रखते हैं. हवाई फायरिंग और ऊंचाई पर बैठे दुश्मन बाधा डाल रहे थे. स्थितियां और मौसम विपरीत था. न स्नो बूट थे और न ही स्नो टेंट, लेकिन इन पहाड़ियों पर चढ़कर दुश्मनों को चारों तरफ से घेरना उनके रास्ते बंद करना उन्हें मार गिराने और पीछे हटाने का हौंसला, जुनून, जोश और हिम्मत जवानों में थी. ऊंचा मनोबल, पहाड़ों पर चढ़ने का अनुभव और तिरंगे को कभी झुकने देने का जज्बा.

कैप्टन शाम लाल कहते हैं कि दूसरा कदम तभी उठता है, जब पहला मजबूत हो. उस समय उनकी रेजिमेंट के कर्नल लेफ्टिनेंट जनरल एस.एस. ग्रेवाल पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, आर्मी हेडक्वार्टर में थे. उन्होंने जम्मू और कश्मीर राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर और दूसरी जम्मू और कश्मीर राइफल्स की यूनिट से मैन पावर बढ़ाने के लिए ऑफिसर्स, जेसीओ और जवान भिजवाए. 28 आर.आर. की एक कंपनी और पैराट्रूपर्स कमांडो की एक कंपनी भेजी. इससे उनकी यूनिट की ताकत दुगनी हो गई. उनके साथ एक आर्टिलरी ब्रिगेड, फोर्स, गन और दूसरी आर्टी गन तैनात थी. रात-दिन बिना रुके दोनों तरफ से आतिशबाजी की फायरिंग होती रही. बोफोर्स का फायर 90 डिग्री पर पहाड़ों को क्रॉस कर गिरता, जो दुश्मनों को भारी पड़ गया था. रात-दिन 25 हजार से भी अधिक आर्टिलरी तोपें दागी गई.

भारत की ओर से भारी गोलाबारी के चलते पाकिस्तान को जान माल के साथ हथियारों,एम्युनिशन राशन और इक्विपमेंट का भारी नुकसान हुआ. भारतीय सेना के अदम्य साहस के सामने पाकिस्तान के बचे हुए सैनिकों को भागने पर मजबूर होना पड़ा.

कैप्टन श्याम लालबताते हैं कि भारत की संस्कृति के मुताबिक पाकिस्तान के सैनिकों के शवों को भारतीय सेना ने सम्मान के साथ दफनाया.