आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर मकरंद आर. परांजपे ने राष्ट्रपति निवास में गुरुवार को मुख्य भवन में स्थित किचन विंग क्षेत्र की मरम्मत और पुनर्स्थापना की आधारशिला रखी गई। उन्होंने कहा कि देश की इस विरासत को बचाए रखने तथा इस रहने लायक बनाए रखने के लिए बुनियादी मरम्मत और पुनस्थार्पना की बेहद आवश्यकता है।
बाद में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए परांजपे ने कहा कि 1888 में अपने निर्माण से लेकर अब तक यह भवन 132 वर्ष पुराना हो चुका है और काफी समय से इसमें मरम्मत किए जाने की आवश्यकता थी। जिसके लिए मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा अक्टूबर 2019 में 66.38 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए है। प्रोजेक्ट के पहले चरण में दो वर्ष की समय सीमा में 10.40 करोड़ रुपया आवंटीत किया गया है।
राष्ट्रीय धरोहर को संजोए रखने के लिए आवश्यक इस काफी से अटके हुए महत्वपूर्ण कार्य के पूरा होने के कारण संस्थान के निदेशक ने इसे बेहद महत्वपूर्ण दिन बताया। उन्होंने इसे संस्थान, सीपीडब्ल्यूडी और एएसआई का संयुक्त प्रयास बताया और इस सपने को साकार करने के के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय व शहरी विकास मंत्रालय का धन्यवाद अर्पित किया।
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भवन के स्थापित होने से आज तक इस भवन का मरम्मत कार्य नहीं हुआ है। हालांकि समय-समय पर हल्की मरम्मत का कार्य चलता रहता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के निदेशक प्रो. मकरंद आर. परांजपे ने बताया कि आज का यह स्वर्णिम दिन है। उन्होंने बताया कि यह कार्य हेरिटेज कंसलटेंट द्रोणा नामक कंपनी को दिया जा रहा है जिसका काम आज से शुरू होगा। उन्होंने कहा कि इस कार्य के लिए 67 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है जिसमें 12 करोड रुपए से असुरक्षित किचन की मरम्मत करवाई जाएगी।
निदेशक ने बताया कि मरम्मत का कार्य स्वीकृत कराने के लिए कई बाधाएं सामने आई। इसके लिए उन्हें लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ी लेकिन सरकार की ओर से सकारात्मक सहयोग के कारण आज मरम्मत का कार्य शुरू होने जा रहा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड का कॉउंसिल चैम्बर की छत भी टूटी हुई है जहां से बारिश के समय पानी टपकता है। निदेशक ने जानकारी देते हुए बताया कि 2 साल में किचन और 3 वर्ष में पूरे हेरिटेज भवन की मरम्मत कर ली जाएगी।
इस अवसर पर संस्थान के सचिव कर्नल (डॉ.) विजय तिवारी, एवं केंद्रीय लोक निर्माण विभाग देवेंद्र प्रकाश, रोहित जोरवाल, संजय जैन एवं भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रतिनिधि व संस्थान के अधिकारी भी उपस्थित थे।