आदर्श हिमाचल ब्यूरो
हमीरपुर। राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में धड़ाम होती अर्थव्यवस्था के दुष्प्रभावों से देश अब आर्थिक व मानसिक गुलामी की ओर बढ़ रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस ने लगातार संघर्ष और सतत प्रयास करते हुए आपात स्थिति के लिए जो संवैधानिक संस्थाएं व संस्थान कायम किए थे। उन संस्थानों को एक-एक करके सेल करना देश के आर्थिक भविष्य के लिए घातक साबित होगा। राणा ने कहा कि सरकार बताए कि एक बाद एक प्रॉफिट मेकिंग संस्थानों की सेल से क्या देश में फिर ईस्ट इंडिया जैसी कंपनी के युग की शुरुआत हो रही है। उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि सरकार बताए कि क्या देश आर्थिक दिवालियेपन की कगार पर पहुंच चुका है। जो सरकार को तमाम आर्थिक उपक्रमों को बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
राणा ने कहा कि हवाई अड्डों, रेल व रेलवे स्टेशनों, देश की बड़ी तेल कंपनियों, दूरसंचार कंपनियों, हवाई कंपनियों को एक-एक करके फरोख्त करने की सरकार की मंशा के पीछे राज क्या है? आरबीआई के रिजर्व फंड तक सरकार ने देश को विश्वास में लिए बिना निकाल लिए हैं। महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी मुंबई के हवाई अड्डे पर अब अडाणी समूह का कब्जा करवाया जा रहा है। जानकारी आई है कि मुंबई हवाई अड्डे पर अब 74 फीसदी की हिस्सेदारी पर अडाणी समूह काबिज होगा। केंद्र हो या राज्य देश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं दिख रही है।
सिस्टम पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। राजनीतिक मर्यादा लगातार टूट रही है। किसी भी सामान्य नागरिक की निगाहें अब यह पता करने के लिए काफी हैं कि सरकारी संपत्तियों की सेल बेरहमी से जारी है। नागरिकों को सरकार और सिस्टम पर कोई भरोसा नहीं हो रहा है। अधिकांश राज्यों में सरकार से बड़ा सिस्टम साबित हो रहा है और सिस्टम के जरिए आम आदमी लगातार लूट-पिट रहा है। बदहाल हो चुकी अर्थव्यवस्था व सरकारी संस्थानों की सेल को लेकर दुनिया भर में भारत की फजीहत हो रही है। लेकिन सरकार देश को व्यक्तिगत एजेंडे पर चलाने की जिद्द में देश के भविष्य को तबाह करने पर आमादा है।
अब यह साबित हो रहा है कि यह जरूरी नहीं कि बहुमत में मिला जनादेश देश के लिए हितकारी ही होगा। बहुमत में मिले जनादेश ने देश में एक नई अति कर दी है। आलम यह है कि सियासत को धंधा बना कर राजनीति करने वाली सरकार का वित्त मंत्रालय फानेंशियल इकोनॉमी को संभालने में पूरी तरह नाकाम रहा है। देश की अर्थव्यवस्था अब अनर्थव्यवस्था बन चुकी है। सारी दुनिया में सबसे ज्यादा गिरावट भारत की अर्थव्यवस्था में दर्ज हुई है।
दुनिया मेंछाए कोविड-19 संकट के दौरान दुनिया के देशों की जीडीपी में 10 से 15 फीसदी से ज्यादा की गिरावट नहीं आई है। लेकिन जीडीपी गिरावट के मामले में भारत ने ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया है। राज्य सरकारें अपनी जीएसटी की राशि के लिए चीख रही हैं। बदहाल हो चुकी अर्थव्यवस्था में मांग लगातार घटी है। यह संकट देश के लिए काफी खतरनाक व घातक है, लेकिन सरकार सिर्फ लफ्फाजी जुमलों से काम चलाना चाह रही है। देश की राजनीति में बहुमत का इससे ज्यादा दुरुपयोग कभी नहीं हुआ है।
सरकारों की निरंकुशता व स्वार्थ लोलुपता निरंतर बढ़ी है और देश की संपत्तियों और परिसंपत्तियों को बेचने का सिलसिला संकट के इस दौर में लगातार बढ़ा है। जिसको देखकर कयास लगाए जा सकते हैं कि क्या देश में फिर से नई ईस्ट इंडिया कंपनियों का राज होगा? देश के सरकारी उपक्रमों के बिकने से सरकार द्वारा पिछड़े दलितों को सरकारी नौकरियों में दिए जाने वाला आरक्षण अब बेमानी साबित होगा। क्योंकि कोई भी प्राइवेट कंपनी आरक्षण के आधार पर किसी को रोजगार नहीं देगी। यह स्थिति देश के लिए घातक है।