शिमला: हिमाचल प्रदेश के सेबों की डिमांड न केवल देश में बल्कि विदेशों में काफी बढ़ गई है. देश के महानगरों में हिमाचल के सेब की मांग रहती है. सेब की परंपरागत रॉयल किस्म संग विदेशी किस्मों का भी उत्पादन पिछले कुछ वर्षों से परदेश में काफी बढ़ गया है. विगत डेढ़ दशक का आंकड़ा देखा जाए तो वर्ष 2010 में अबतक सबसे अधिक 4.46 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था. इस बार करीब 4 हजार करोड़ के सेब कारोबार की मार्केट डाउन हो गई है. बागवानों को अपनी उपज के बेहतर दाम नहीं मिल रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में रिकॉर्ड 4 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन एक साथ होने और उनके एक साथ मार्केट में सप्लाई होने के कारण पिछले 15 दिन में प्रति पेटी 1000 से 1200 रुपए तक थोक रेट कम हो गए हैं. पहले 25 से 30 किलोग्राम की प्रति पेटी का रेट 2700 रुपए से घटकर 1700 रुपए पर आ गया है.
बता दें कि सेब उत्पादन के लिए शिमला जिले का जुब्बल, कोटखाई, नारकंडा, चौपाल, कोटगढ़, क्यारी, रोहड़ू विख्यात है. इसके साथ-साथ कुल्लू, मंडी, किन्नौर, चंबा, लाहौल-स्पीति व सिरमौर में भी सेब की पैदावार होती है.
आखिर क्या है वजह सेब के दाम गिरने की ?
हिमाचल में सेब का उत्पादन मुख्यत: तीन बेल्टों में होता है: लोअर, मिडिल व हाई. लोअर बेल्ट में 15 जुलाई से 15 अगस्त तक चलता है. इस दौरान देश की पूरी मार्केट में सेब का एक मुख्य श्रोत सिर्फ हिमाचल ही होता है. ऐसे में बागवानों को सेब के अच्छे दाम मिल जाते हैं, लेकिन लोअर एलिवेशन में सेब उत्पादन का एरिया काफी कम है. जिस कारण सेबों का उत्पादन रेट भी कम होता है.
मिडिल बेल्ट में 15 अगस्त से 15 सितंबर के बीच सेब सीजन चलता है. मिडिल बेल्ट में सबसे अधिक सेब का उत्पादन एरिया आता है और इस कारण सेब उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा इसी बेल्ट का होता है. इस समय देश में सभी हिस्सों से सेब मार्केट में बड़ी मात्रा में पहुंचता है.
इस वर्ष हिमाचल में लोअर और मिडिल बेल्ट में सेब की बंपर पैदावार हुई है. साथ ही लोअर बेल्ट का सेब अभी भी मार्केट में पहुंच रहा जबकि यह दौर मिडिल बेल्ट के सेबों का है. ऐसे में भारी मात्रा में सेब मार्केट में पहुंच रहा है जिस वजह से सेब का मार्किट डाउन हो गया है. साथ ही इस बार असमय बारिश और ओलावृष्टि से भी सेब की फसल पर भारी असार पड़ा है. इस वजह से सेब के आकार व रंग भी प्रभावित हुआ है.