कविता ,आदर्श हिमाचल
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जीने की कला
दागदार समय पर
झागदार साबुन मलने की तरह है
जिससे व्यक्ति जीवन भर
अपने व्यक्तित्व को चमकाता रहता है
रगड़ रगड़ कर
जीने का आनंद
सपाट सीधी खड़ी चोटी पर
कांटेदार जूतों के सहारे चढ़ने की तरह है
जिससे व्यक्ति जीवन भर
अपने अस्तित्व को उठाता रहता है
पकड़ पकड़ कर
जीने का मूल्य
प्रतिस्पर्धा के संघर्षमय बाजार पर
कला और आनंद के बल राज करने जैसा है
जिससे व्यक्ति जीवन भर
अपने कृतित्व को दिखलाता रहता है
अकड़ अकड़ कर
डॉ एम डी सिंह
महाराज गंज गाजीपुर उत्तर प्रदेश