विशेष: जलवायु संकट और कोविड ने मिलाया हाथ, 140 मिलियन लोग झेल रहे एक साथ

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

Ads

चरम मौसम की घटनाओं और महामारी ने न सिर्फ एक साथ लाखों लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया है, बल्कि जलवायु और कोविड संकट के संयोजन ने रिलीफ़ (राहत-सहायता प्रतिक्रिया) प्रयासों में बाधा डालने के साथ-साथ अभूतपूर्व‘ मानवीय ज़रूरतें पैदा की हैं। यह कहना है इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज़ (IFRC) की एक रिपोर्ट का।

इस रिपोर्ट के अनुसार, 140 मिलियन लोग – रूस की लगभग पूरी आबादी के बराबर – महामारी के दौरान बाढ़सूखातूफान और जंगल की आग से प्रभावित हुए हैं। 65 से अधिक या पांच साल से कम उम्र के 660 मिलियन लोग हीटवेव (गर्मी की लहर) की चपेट में आ गएजो संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी का लगभग दोगुना है।

कोविड की चपेट में आने के बाद से सबसे घातक घटना (जिसके लिए डाटा उपलब्ध है) पश्चिमी यूरोप में 2020 की हीटवेव थीजिसमें बेल्जियमफ्रांसजर्मनीनीदरलैंडस्विट्जरलैंड और यूके में 11,000 से अधिक मौतें हुईं। जबकि भारतबांग्लादेश और श्रीलंका में 20.6 मिलियन लोगों को प्रभावित करने वाली महामारी के दौरान चक्रवात अम्फान ने सबसे गंभीर जलवायु संकट बनाया। हीटवेवों ने शीर्ष तीन सबसे घातक घटनाओं में से दो को बनायाऔर आज होने वाली हर हीटवेव जलवायु परिवर्तन से अधिक संभावित और अधिक तीव्र हो जाती है। जून 2020 में आई बाढ़ से भारत में क़रीब 2000 लोग प्रभावित हुए थे।

वैज्ञानिक घटना एट्रिब्यूशन अध्ययनों में पाया गया है कि ग्लोबल हीटिंग ने कई विशिष्ट घटनाओं को शक्तिशालीलंबा या अधिक संभावित बना दिया। कुछ घटनाएं – जैसे कि प्रशांत नॉर्थवेस्ट में 2021 हीटवेव – जलवायु परिवर्तन के बिना दुनिया में लगभग असंभव होती।

जलवायु परिवर्तन मौजूदा संवेदनशीलताओं और खतरों को बदतर बना देता हैऔर इसने विशेष रूप से उन लोगों को प्रभावित किया है जो पहले से ही महामारी की वजह से संवेदनशील हैं। उदाहरण के लिएसीरिया और इराक़ में जारी सूखा पानी की उपलब्धता और बिजली आपूर्ति दोनों को कम कर रहा है क्योंकि जलविद्युत बांध सूख जाते हैंजिससे स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा प्रभावित होती है। होंडुरास और दक्षिण एशिया में तूफ़ान के दौरानरिलीफ़ (राहत-सहायता) कार्यों को अपने घरों से भागने वालों के लिए अतिरिक्त सार्वजनिक आश्रयों की तलाश करनी पड़ी ताकि सामाजिक दूरी को बनाए रखा जा सके। संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य जगहों पर जंगल की आग से होने वाले धुएं ने लोगों के फेफड़ों को परेशान कर दिया और इससे कोविड के मामलों और कोविड से होने वाली मौतों में वृद्धि हुई।

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज़ (IFRC) का कहना है कि समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रति एडाप्ट होने के लिए और अधिक सहायता की आवश्यकता है, और यह कि जलवायु और महामारी को एक साथ संबोधित करने से आर्थिक रूप से अधिक लचीली रिकवरी होगी।

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद सेजलवायु संबंधी आपदाओं ने कम से कम 139.2 मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और यह 17,242 से अधिक लोगों की मौत का कारण बनी हैं।

यह एक्सट्रीम (चरम) – मौसम की घटनाओं और कोविड-19 के मिश्रित प्रभावों पर यह इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज़ (IFRC) और रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट क्लाइमेट सेंटर द्वारा आज प्रकाशित एक नए विश्लेषण की खोज है। और अनुमानित 658.1 मिलियन लोग अत्यधिक तापमान के संपर्क में आए हैं। नए डाटा और विशिष्ट केस स्टडीज़ के माध्यम सेरिपोर्ट दिखाती है कि कैसे दुनिया भर में लोग कई संकटों का सामना कर रहे हैं और ओवरलैपिंग (अतिव्यापी) संवेदनशीलताओं से जूझ रहे हैं।

पेपर दोनों संकटों को एक साथ संबोधित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है क्योंकि कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में आजीविका को प्रभावित किया है और समुदायों को जलवायु जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज़ (IFRC) के अध्यक्षफ्रांसेस्को रोक्काजिन्होंने आज न्यूयॉर्क में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नई रिपोर्ट पेश कीने कहा: दुनिया एक अभूतपूर्व मानवीय संकट का सामना कर रही है जहाँ जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 समुदायों को उनकी सीमा तक धकेल रहे हैं। COP26 के होने तक के समय मेंहम विश्व के नेताओं से न केवल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिएबल्कि जलवायु परिवर्तन के मौजूदा और होनेवाला मानवीय प्रभावों को सम्भोदित करने के लिए भी तत्काल कार्रवाई करने के लिए आग्रह करते हैं।

रिपोर्ट कोविड-19 संकट के दौरान हुई एक्सट्रीम (चरम) – मौसम की घटनाओं के ओवरलैपिंग (अतिव्यापी) जोखिमों के प्रारंभिक विश्लेषण[1] के एक साल बाद आई है। महामारी का कहर दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभावों के साथ जारी हैलेकिन साथ ही बड़े पैमाने पर अप्रत्यक्ष प्रभाव भी हैजो थोड़ा-बहुत महामारी को रोकने के लिए लागू किए गए प्रतिक्रिया उपायों के कारण है। मौसम की एक्सट्रीम (चरम सीमा) के कारण होने वाली खाद्य असुरक्षा को कोविड-19 ने और बढ़ा दिया है। स्वास्थ्य प्रणालियों को उनकी सीमा तक धकेल दिया गया है और सबसे संवेदनशीलत लोगों को ओवरलैपिंग (अतिव्यापी) सदमों का सामना करना पड़ा है।

अफ़ग़ानिस्तान मेंभीषण सूखे के प्रभाव संघर्ष और कोविड-19 के कारण और भी बढ़ गए हैं। सूखे ने कृषि खाद्य उत्पादन को अशक्त बना दिया है और पशुधन को कम कर दिया हैजिससे लाखों लोग भूखे और कुपोषित रह गए हैं। अफ़ग़ान रेड क्रिसेंट सोसाइटी ने सहायता बढ़ाई हैजिसमें लोगों के खाद्य आपूर्ति खरीदने के लिए भोजन और नकद सहायतासूखा-प्रतिरोधी खाद्य फसलें लगाने और अपने पशुओं की सुरक्षा के लिए सहायता शामिल है।

होंडुरास मेंमहामारी के दौरान तूफ़ान एटा और आइओटा का सामना करने मेंका मतलब अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना भी था। अस्थायी आश्रयों में हजारों लोग बेघर हो गए। उन आश्रयों में एंटी-किविद-19 उपाय कार्यवाही के लिए शारीरिक दूरी और अन्य सुरक्षात्मक उपायों की आवश्यकता थीजिनसे क्षमता सीमित हुई।

केन्या मेंकोविड-19 के प्रभाव एक साल में बाढ़ और अगले साल सूखे के साथ-साथ टिड्डियों के प्रकोप से टकरा रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 2.1 मिलियन से अधिक लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। देश में और पूर्वी अफ्रीका के पारकोविड-19 प्रतिबंधों ने बाढ़ का सामना करने की सहायता प्रतिक्रिया और प्रभावित आबादी तक आउटरीच को धीमा कर दिया जिससे उनकी संवेदनशीलता बढ़ गई।

दुनिया भर में रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट सोसायटीयां न केवल उन ओवरलैपिंग (अतिव्यापी) संकटों की प्रतिक्रिया में सहायता दे रही हैं बल्कि समुदायों को जलवायु जोखिमों के लिए तैयार करने और उनका अनुमान लगाने में भी मदद कर रही हैं।

उदाहरण के लिए बांग्लादेश मेंरेड क्रिसेंट सोसाइटी ने इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज़ (IFRC) के नामित धन का उपयोग बाढ़ से संबंधित अर्ली वार्निंग मेसेजेस (पूर्व चेतावनी संदेशों) को लाउडस्पीकर के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों में प्रसारित करने के लिए किया है ताकि लोग आवश्यक उपाय कार्यवाही कर सकें और यदि आवश्यक हो तो इवैक्यूएट (इलाक़ा ख़ाली) कर सकें।

RCRC (आरसीआरसी) क्लाइमेट सेंटर की एसोसिएट डायरेक्टर जूली अरिघी ने कहा: “खतरों को आपदा बनने की ज़रूरत नहीं है। अगर हम स्थानीय स्तर पर संकटों की आशंकाशीघ्र कार्रवाई और जोखिम में कमी लाना जैसे करते हैं इसे बदलते हैं तो हम बढ़ते जोखिमों की प्रवृत्ति का मुक़ाबला कर सकते हैं और जीवन बचा सकते हैं। अंत मेंहमें समुदायों को अधिक लचीला बनने में मदद करने की आवश्यकता हैविशेष रूप से सबसे संवेदनशील संदर्भों में।”

कोविड-19 महामारी का जलवायु जोखिमों पर अधिक देर तक रहने वाला प्रभाव पड़ा है। सरकारों को सामुदायिक एडाप्टेशनप्रत्याशा प्रणाली और स्थानीय अभिनेताओं में निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध होने की ज़रुरत है।

कोविड-19 रिकवरी में बड़े पैमाने पर खर्च यह साबित करता है कि सरकारें वैश्विक खतरों का सामना करने के लिए तेज़ी से और प्रबलतीव्र रूप से कार्य कर सकती हैं। यह शब्दों को क्रिया में बदलने और उसी ताक़त को जलवायु संकट के लिए समर्पित करने का समय है। हर दिनहम मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देख रहे हैं। जलवायु संकट यहाँ हैऔर हमें अभी कार्य करने की आवश्यकता है,” रोक्का ने कहा।