दीवान राजा
आनी। हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं की तपस्थली कहा जाता है । देवभूमि हिमाचल में देव परम्परा वैदिक काल से ही चली आ रही है । इसी परंपरा ने हमारी समृद्ध संस्कृति को जीवित बनाए रखा है । हिमाचल के गांवों में कई प्राचीन मंदिर हैं ,जिनके अपने अधिकार क्षेत्र हैं । इन इलाकों के लोगों की अपने ईष्ट देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था बरकरार है ।
इसी क्रम में आनी उपमंडल की ग्राम पंचायत कुटेढ के तहत प्राचीन मंदिर कुई कंडा जल्द नए रूप में नज़र आएगा । मंदिर कमेटी ने एक भव्य व सुंदर मंदिर बनाने की कवायद शुरू कर ऐ है । जिसके लिए कमेटी ने पहला पत्थर लगाकर आधारशिला भी रख दी है । हिमारीगढ़ व फाटी कुटेढ के लोगों इस नए मन्दिर बनने को लेकर काफी उत्साहित दिख रहे हैं ,यही कारण है कि लोग प्रतिदिन मंदिर निर्माण के कार्य में अपना सहयोग दे रहे हैं । मन्दिर में सुंदर नक्काशी की जा रही है ।
कुईकंडा नाग फ़िलहाल अपने प्राचीन मंदिर तांदी में वास करते हैं । कुईकंडा पर्यटन की दृष्टि से भी काफ़ी महत्वपूर्ण स्थल है । यहां की प्राकृतिक सुंदरता को निहारने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं । कुई कंड़ा नाग जी जो कि माता बूढी नागिन के जेष्ठ पुत्र है जिनका वैदिक नाग भगवान अन्नत तथा नाग नसैसर है। यह मंदिर दलाश से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है ।
आप को बता दें कि लोगों की कुई कांडा नाग पर बहुत आस्था है। इसके बारे में कहा गया है कि कुई कांडा नाग ने सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने फनों पर धारण कर रखा है बाह्य सिराज में केवल यही एक ऐसे देवता है जो निमंत्रण के बावजूद भी दशहरे में शामिल नहीं होते क्योंकि इन्होंने लगभग दशकों पहले दशहरे में शिरकत की थी तब इन्होंने गेट जिसे हम परौल के नाम से जानते है उसके नीचे से नहीं जाते तब उस समय ज़बरदस्ती से परौल के नीचे से गुजारने की कोशिश की गई तो इन्होंने वहाँ ऐसा तांडव मचाया कि उस वक्त के राजा को कहना पड़ा कि इन्हें दशहरे में न लाया जाए इनका नजराना इन्हें हमेशा मिलता रहेगा जो कि विधिवत रूप से आज भी आता है।
बूढ़ी नागिन माता के सात पुत्र हैं और नागिन का अपना स्थान गेहगी मैं है और माता की स्थापना सरेलसर नामक स्थान पर भी की है जहाँ पर हर साल हजारों लोग इनके दर्शन के लिए जाते हैं । यहाँ एक प्राकृतिक झील है जिसके चारों ओर श्रद्धालु चक्र लगातें है और सुखशांति की मनोकामना करते हैं । कुई कांडा नाग श्रद्धालुओं मनोकामना पुरी करते हैं