भूस्खलन के लिए मानवीय गतिविधियां और विकास के लिए अपनाया जा रहा अवैज्ञानिक रास्ता जिम्मेदार: डा. कुलदीप तंवर

शिमला: प्रदेश के विभिन्न भागों में बारिश के कारण हो रहे भारी भूस्खलन पर प्रदेश की सामाजिक संस्था हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने गहरी चिंता व्यक्त की है. समिति का मानना है कि इनमें से अधिकतर के लिए मानवीय क्रियाकलाप और विकास के लिए अपनाया जा रहा अवैज्ञानिक रास्ता ज़िम्मेदार है. समिति के राज्य सचिव जीयानन्द शर्मा ने कहा कि प्रदेश में पारिस्थितिकी और पर्यावरण की अनदेखी करते हुए बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं और खनन को मंज़ूरी दी जा रही है. शर्मा ने कहा कि पहाड़ी प्रदेशों में विकास पर्यावरण और पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए. हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने किन्नौर हादसे सहित प्रदेश के विभिन्न भागों में भारी बारिश से जान गंवाने वाले लोगों के प्रति शोक व्यक्त किया है.

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1997 में आन्ध्रा खड्ड में आई बाढ़ के अध्ययन से सामने आए थे हादसे के मानवीय कारण

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शर्मा ने बताया कि हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने वर्ष 1997 में आन्ध्रा खड्ड (चिड़गांव) में बादल फटने से हुए हादसे पर एक अध्ययन किया था जिसमें पाया गया था कि जंगल कम होने से वहां 200 सालों में 4 डिग्री तक तापमान बढ़ा था. इसके साथ ही वहां धूप जड़ी निकालने और भेड़-बकरियों के खुरों से जो ज़मीन में गड्डे बने थे और ज़मीन नरम पड़ गई थी उसकी वजह से जब बादल फटा तो ज़मीन बह गई. वहीं अध्ययन में पाया गया था कि वहां फॉरेस्ट कॉर्पोरेशन ने काफी समय से गिरे-पड़े पेड़ों को नहीं उठाया था. जिसके कारण ये लकड़ी बहकर चट्टानों के बीच फंस गई और पानी और मिट्टी ने झील का रूप ले लिया. रुके हुए पानी पर दबाव बढ़ने ने इसने भारी बाढ़ का रूप लिया.

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किन्नौर हादसे पर विषेषज्ञ राय

“हिमालयी श्रृंखला पहले से ही नाज़ुक और अस्थिर पर्वत श्रृंखला है जहां बार-बार भूकंप आते रहते हैं. यहाँ हमेशा भूस्खलन, बाढ़ का खतरा बना रहता है. अगर इस क्षेत्र में प्रकृति के साथ अन्यथा छेड़छाड़ की गई तो इसके नतीजे भयानक हो सकते हैं. पिछले सालों में चम्बा से लेकर किन्नौर तक जलविद्युत परियोजनाओं के लिए बड़े बांध बनाने के लिए पेड़-पौधों और भूमि का कटान हुआ है उसकी वजह के ऐसे हादसों की संख्या बढ़ी है. वहीं जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम चक्र में बदलाव और अनियमित, अनियंत्रित वर्षा के कारण खतरा और भी बढ़ा है. सरकार को चाहिए कि प्रदेश को पारिस्थितिकी के आधार पर नाज़ुक क्षेत्रों (Ecologically Fragile Zone) में बांटकर उनके अनुसार ही विकास की योजनाएं बनाएं.”

पर्यावरण सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम के बाद ही हो परियेजना शुरू

“हिमाचल प्रदेश में जलविद्युत उत्पादन क्षमताओं और संभावनाओं के मद्देनज़र पिछले समय में सरकारों ने जिस तरह से वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को पूरा किये बगैर तेज़ी से परियोजनाओं को मंजूरी दी है और यह भी सही है कि बिना अण्डा फोड़े ऑमलेट नहीं बन सकता. इसलिए विकास के लिए जल विद्युत परियोजनाएं, खनन और अन्य निर्माण कार्य करना ज़रूरी है. मानव रहित पर्यावरण का कोई अर्थ नहीं है परन्तु यह भी ज़रूरी है कि कोई भी परियोजना शुरू करने से पहले पर्यावरण संरक्षण और वनीकरण को सुनिश्चित किया जाए. इसके लिए परियोजना में कैम्पा Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (CAMPA) फंड का विषेष प्रावधान होता है. लेकिन अनुभव यह है कि इस फण्ड का इस्तेमाल इसके मूल उद्देश्य के बजाय या तो अन्य कार्यो में होता है या समय तक नहीं होता. पर्यावरण सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम के बाद ही कोई परियोजना शुरू की जानी चाहिए.”