आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का स्पष्ट मत है कि देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों के पाठ्यक्रम वैज्ञानिक, तर्कसंगत तथा समझता की दृष्टि से युक्त होने चाहिए। देश की शिक्षा व्यवस्था को वामपंथियों तथा तथाकथित पंथनिरपेक्षतावादियों ने लंबे समय तक खंडित, एकपक्षीय तथा एजेंडा चलाने के शस्त्र के तौर पर देखा, जिस कारण से इतिहास सहित कुछ विषयों के पाठ्यक्रम छात्रों के समग्र विकास का स्पष्ट खाका होने के स्थान पर दोष व विवाद का समय-समय पर माध्यम बने, और अंततः इससे शिक्षा व्यवस्था को नुकसान हुआ। देश का इतिहास केवल दिल्ली केन्द्रित या मध्यकाल के कुछेक शासक वंशों तक ही केन्द्रित कर देखने की परिपाटी को मिटाकर, समग्र तथा सभी पक्षों को समेकित किए हुए नई परिपाटी गड़ा जाना समय की माँग है।
अहम चोल, विजयनगर, गोंड आदि राजवंशों के इतिहास सहित जनजातियों के गौरवशाली इतिहास का पाठ्यक्रमों में समुचित स्थान सुनिश्चित करना चाहिए।विद्यार्थियों में तथ्य व समग्रता आधारित दृष्टिकोण, आलोचनात्मक दृष्टि के विकास तथा इक्कीसवीं सदी के कृत्रिम मेधा के व्यापक परिवर्तनकारी दौर की आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रमों को अद्यतन करना तथा आवश्यकता पड़ने पर नए पाठ्यक्रमों को तैयार किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा इस दिशा में कदम बढ़ाने से शिक्षा क्षेत्र में आज की आवश्यकता अनुरूप बदलाव किए जाने की आशाओं को उचित स्वर मिला है।
अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री श्री याज्ञवल्क्य शुक्ल ने कहा कि, “भारतीय इतिहास को समयता से पढ़ाया जाना चाहिए, न कि उसे केवल दिल्ली केन्द्रित या केवल एक सल्तनत के शासनकाल के एक ही पक्ष तक केन्द्रित किया जाना चाहिए। पूर्व में ऐसा करके तथाकथित बुद्धिजीवियों ने देश की आशाओं तथा इतिहास के साथ न्याय नहीं किया। देश की शिक्षा व्यवस्था में सभी स्तरों पर पाठ्यक्रमों का अद्यतन किया जाना तथा पूर्व में हुई भूलों को सुधारा जाना बहुत आवश्यक हो गया है। एनसीईआरटी तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों द्वारा इस दिशा में उचित प्रयास हो रहे हैं। वामपंथियों सहित अन्य एजेंडावादियों को हर बदलाव को अपने चश्मे से देखने की पुरानी गलत आदत बदलनी होगी। पाठ्यक्रमों में सुधार तथा समग्रता निहित किया जाना आवश्यक है।”