आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला की ओर से इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली के सभागार में 26वाँ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्मृति व्याख्यान आयोजित किया गया। यह व्याख्यान भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे द्वारा भारत की सौम्य शक्ति कौशलता: चुनौतियाँ एवं उत्तरदायित्व विषय पर प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। उसके बाद संस्थान के निदेशक एवं इग्नू, नई दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर नागेश्वर राव ने स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत किया। उनके उद्बोधन के उपरांत संस्थान के उपाध्यक्ष्य एवं माइका, अहमदाबाद के अध्यक्ष व निदेशक प्रोफे़सर शैलेन्द्र राज मेहता, ने अपना उद्बोधन प्रस्तुत किया। संस्थान की अध्यक्ष प्रोफे़सर शशिप्रभा कुमार मुख्य वक्ता का परिचय तथा कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि यह स्मृति व्याख्यामाला वर्ष 1991 में आरंभ हुई थी और अभी तक जस्टिस लीला सेठ, कपिल वात्स्यान, प्रोफेसर डीपी चट्टोपध्याय, 14वें परम पावन दलाई लामा, जस्टिस पी. नरसिम्हा जैसे अनेक प्रतिष्ठित विद्वान विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दे चुके हैं जिनमें डॉ. विनय सहस्रबुद्धे द्वारा भारत की मृदु शक्ति कौशलता: चुनौतियाँ एवं उत्तरदायित्व विषय पर प्रस्तुत 26वां व्याख्यान विशेष महत्व रखता है।
डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने अपने व्याख्यान में कहा कि सौम्य शक्ति अपेक्षाकृत नव अवधारणा है। आज हम विश्व स्तर पर होने वाले विमर्शों का उल्लेख करते हैं कि क्योंकि उन्हें बड़े पैमाने पर जनमत की शक्ति के रूप में देखा जाता है। ऐसे विमर्शों, आख्यानों की तरह, सौम्य शक्ति भी एक ऐसा कारक है जो लोकप्रिय सोच को आकार देने के साथ-साथ उसे प्रतिबिंबित भी करता है। भारत को बाहरी दुनिया में इंडिया के नाम तो अभी जाना जाने लगा मगर भारतीय संस्कृति का प्रभाव सदियों पहले ही विश्व में फैल चुका था। प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार और दार्शनिक विल ड्यूरेंट जैसे कई विद्वानों ने ज्ञान के कई क्षेत्रों के उद्भव के स्थान के रूप में भारत के प्रभाव को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है।
यह भी पढ़े:-शिमला के वार्ड नं. 24 हाउसिंग बोर्ड काॅलोनी में उचित मूल्य की दुकान के लिए 23 दिसम्बर तक आवेदन आमंत्रित
उन्होंने कहा कि ’नित्यनूतन चिरपुरातन’ की विशेषता भारतीय संस्कृति को कई मायनों में अद्वितीय बनाती है। साथ उन्होंने भारत के विश्व-दृष्टिकोण के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, हमारी विविधता में निहित एकता ने हमें न केवल समायोजित करने में बल्कि हमारी व्यापक विविधता के भी सक्षम बनाया है। प्राचीन भारतीय ज्ञान पद्धतियाँ महत्वपूर्ण हैं मगर दर्शन, चिकित्सा, गणित आदि में इतना गहन ज्ञान निहित होते हुए भी इन्हें अक्सर कम महत्व दिया जाता है या गलत समझा जाता है। उन्होंने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में सौम्य शक्ति बहुत महत्वपूर्ण विषय है और बदलते वैश्विक परिवेश में इसके महत्व प्रमुखता से समझना चाहिए और इस मार्ग में आने वाली चुनौतियों का एकजुट होकर सामना करना चाहिए।
बता दें कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वर्ष 1965 में शिमला स्थित अपने आवास राष्ट्रपति निवास में उच्च शोधकार्यों के लिए भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थापना की थी। यह स्मृति व्याख्यान उस महान दार्शनिक राष्ट्रपति के प्रति शृंद्धाजलि स्वरूप हर वर्ष आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर संस्थान द्वारा हिन्दी माध्यम से प्रकाशित दो अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिकाओं हिमांजलि अंक-27 तथा चेतना अंक-5 का भी लोकार्पण किया गया। चेतना पत्रिका के इस अंक का संपादन हिन्दी के जाने माने विद्वान एवं संस्थान के पूर्व अध्येता प्रोफेसर माधव हाड़ा ने किया है जबकि चेतना पत्रिका के कार्यकारी संपादक संस्थान में अध्ययनरत अध्येता प्रोफेसर राजेन्द्र बड़गूज़र हैं।
संस्थान के सचिव मेहर चन्द नेगी ने मुख्य वक्ता, उपस्थित सभी सभासदों, मीडिया कर्मियों तथा कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी अधिकारियों, कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच का सफल संचालन संस्थान की अध्येता प्रोफेसर मालती माथुर ने किया और कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।