आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। सनातन धर्मावलम्बियों तथा गृहस्थों के लिए भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 11 अगस्त को मनाना अति शुभ रहेगा। सभी पुराणोंए धार्मिक ग्रंथोंए मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और मध्य रात्रि को वृषभ लग्न में हुआ था इसमें कोई मतभेद अथवा विवाद कभी नहीं रहा। अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के समय रोहिणी नक्षत्र विद्यमान रहता है किंतु, इस बार कृष्ण जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र कहीं दूर दूर तक भी नहीं रहेगा क्योंकि 11 की रात्रि में भरणी नक्षत्र और 12 की रात्रि में कृतिका नक्षत्र विद्यमान रहेगा रोहिणी नक्षत्र 13 तारीख को है अतः नक्षत्रों को लेकर विवाद ही नहीं रहा।
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इस वर्ष भादौं कृष्ण अष्टमी की जिसके कारण पुनः दो दिवसीय पर्व सामने है। कुछ शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी 11 अगस्त को मनाई जाएगीए किंतु कुछ के अनुसार इसे 12 अगस्त को मनाना ही शुभ रहेगा। इसलिए जन्माष्टमी का पर्व अलग.अलग मान्यताओं के अनुसार 11 और 12 दोनों दिन मनाया जाएगा क्योंकिए 11 अगस्त मंगलवार की रात्रि को अष्टमी तिथि विद्यमान है। 12 तारीख बुधवार को अष्टमी तिथि दिन के 11 बजकर 16 मिनट तक ही है उसके बाद नवमी तिथि लग रही है।
उदयातिथि के अनुसार 12 अगस्त को भी जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा सकता है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग तथा वृद्धि योग दोनों हैं ऐसे में अष्टमी तिथि के अभाव में यह दोनों मुहूर्त अति श्रेष्ठ कहे गए हैं। अष्टमी तिथि 11 अगस्त की सुबह 9:06 से आरंभ हो जाएगी। इसलिए संपूर्ण अष्टमी की बात करें तो वह 11 तारीख मंगलवार को ही मिल रही है।
इसमें थोड़ा सा भेद यह आ रहा है कि उदया तिथि के समय सप्तमी तिथि लग रही है। अब प्रश्न यह उठता है कि सामान्य गृहस्थजन जन्माष्टमी 11 को मनाए या 12 को। श्रीमद्भागवत,श्रीविष्णुपुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण, भविष्यपुराण, धर्मसिंधु आदि सभी पौराणिक ग्रंथों एवं शास्त्रों में जन्माष्टमी का पर्व अष्टमी को ही मनाने का विधान है। इनके मतानुसार अष्टमी तिथि 11 तारीख मंगलवार की मध्य रात्रि में पूर्णरूप से विद्यमान है अतः सभी गृहस्थों के लिए जन्माष्टमी का व्रत इसी दिन करना श्रेयस्कर रहेगाए क्योंकि अष्टमी तिथि विजया तिथि है जिसमें योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
वैष्णव संप्रदाय के धर्मावलंबी अष्टमी तिथि 12 तारीख बुधवार को मनाएंगे। जो भक्त उदयकालीन तिथि का अनुसरण करेंगे वह 12 तारीख की मध्य रात्रि में जब रिक्ता तिथि व्याप्त होगी उस समय पूजन करेंगे। किन्तु शास्त्रों में रिक्ता तिथि में किया गया कार्य बहुत शुभ नहीं माना गया है। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण जन्म के समय मध्य रात्रि में वासुदेव जी जब इन्हें लेकर मथुरा से गोकुल के लिए प्रस्थान किए तो उनके गोकुल पहुंचने तक ब्रह्म मुहूर्त लग चुका था इसलिए मथुरा वृंदावन आदि के भक्त उदयातिथि की अष्टमी को ही जन्माष्टमी मांनते हैं। अतः इन स्थानों पर यह पावन पर्व 12 अगस्त बुधवार को ही मनाया जाएगा ।