आदर्श हिमाचल ब्यूरो
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शिमला। वर्तमान में विश्व वैचारिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। सनातन मानवता पर केंद्रित है व्यक्ति पर नहीं सनातन सदियों से चली आ रही विचारधारा का सार है जो ऋषि मुनियों के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ और आज भी वैदिक लौकिक साहित्य तथा मौखिक परंपरा के तौर पर लोक साहित्य में विद्यमान है। इसी राष्ट्रवाद के प्रचार के लिए विभिन्न संस्थाओं , जागरण पत्रिकाओ और विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से कार्य हो रहा हैं, जो समाज को संगठित करने की दिशा में कारगर साबित हुआ है। अतीत से सीख और वर्तमान में भविष्य की चिंता सद् साहित्य के विमर्श से ही संभव है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक प्रो. वीर सिंह रांगडा ने मातृवंदना संस्थान, शिमला द्वारा आयोजित ” साहित्य संवाद” में अपने संबोधन में कहा कि वर्तमान में पत्रिकाओं और पुस्तकों के साथ डिजिटल माध्यम से एक वैचारिक आंदोलन चल रहा है जिसमें कुछ राष्ट्र विरोधी ताकतें भारतीयता, सनातन, अस्मिता और परंपराओं को चुनौती दे रहे हैं, ऐसे में राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए। क्योंकि राष्ट्र बचेगा, तभी सनातन धर्म, दर्शन और संस्कृति भी की जीवंतता बनी रहेगी। प्राचीन और वर्तमान साहित्य ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म से भरा पड़ा है, जिसका अनुसरण करने के लिए पूरा विश्व लालायित है, ऐसे में साहित्य संवाद की भूमिका प्रासंगिक और उपयोगी हो जाती है।
इस कार्यक्रम में प्रांत प्रचार प्रमुख श्री प्रताप सिंह समयाल ने कहा- ” पुस्तक मेला अन्य पारंपरिक मेलों से हटकर लेखकों, प्रकाशकों, पाठकों के महामिलन और परस्पर संवाद का सुनहरा अवसर होता है। साहित्य, लेखक और अध्ययन एवं चिंतन तथा आचरण का विषय होना चाहिए। साहित्य में नैतिक मूल्य तथा व्यक्ति निर्माण की प्रमुखता होनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में श्रौत परंपरा ज्ञान विज्ञान का आधार साहित्य रही है। वैचारिक द्वंद्व वर्तमान स्थिति में चिंता का विषय बनता जा रहा है। हर कोई अपना विमर्श स्थापित करने की होड़ में राष्ट्र की परंपरा और सौहार्द को तोड़ने के लिए अग्रसर है। सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव के व्यक्तित्व, व्यवहार और मस्तिष्क को प्रभावित करने लगा है, जबकि उसका उपयोग मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। सूचना तंत्र की आड़ में मीडिया के माध्यम से होने वाला दुष्प्रचार समाज में अनेक विसंगतियां भी पैदा कर रहा है।
मातृवंदना के संपादक डॉ दयानंद शर्मा ने मातृवंदना मासिक पत्रिका के प्रकाशन की लंबी यात्रा और विशेषांकों की परंपरा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य लेखन में जुटे विद्वान लेखकों का समाज के लिए जितना महत्वपूर्ण योगदान है उतना ही बडा योगदान साहित्य में रूचि रखने वाले पाठको का भी है। मातृवंदना के अब तक अनेक विशेषण का प्रकाशित किये जा चुके हैं, जिनमें हिमाचल में देव परंपरा, पर्यटन, लोक संस्कृति, जनजीवन, आतंकवाद , मंदिर, सेवा कार्य, श्रीराम जन्मभूमि प्रमुख हैं। यह पत्रिका 1992 में पत्रक के रूप में शुरू हुई उसके बाद मासिक तौर पर हिमाचल प्रदेश सहित देश के विभिन्न प्रांतों में हजारों घरों तक पहुंचकर भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार का प्रमुख माध्यम है।
साहित्य संवाद में मातृवंदना के अध्यक्ष अजय सूद ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में निरंतर प्रयास किया जा रहा है। साहित्य संवाद में शिमला के अनेक बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, लेखकों साहित्यकारों ने भी भाग लिया।