भावी अधिवक्ताओं ने रखी EIA-2020 मसौदे को वापस लेने की माँग

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट 2020 ड्राफ्ट को वापस लेने की माँग रखते हुए देश भर के 15 लॉ कॉलेजों के डेढ़ सौ से अधिक छात्रों ने आज पर्यावरण मंत्रालय को एक पत्र लिख कर विरोध दर्ज किया है.

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छात्रों द्वारा इस महत्वपूर्ण मसौदे के खिलाफ अपनी आपत्तियों के साथ एमओईएफसीसी को 22 पेज का विस्तृत पत्र भेजा है। पत्र को जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के लीगल एड क्लिनिक द्वारा तैयार किया गया है और इसमें ईआईए 2020 ड्राफ्ट के प्रत्येक उप-खंड के लिए विस्तृत सुझाव शामिल हैं, जिनका छात्र विरोध करते हैं।

द यूग्मा नेटवर्क द्वारा समन्वित अभियान में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली (NLUD), नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU), NALSAR, DSNLU, NLU’s, एमिटी यूनिवर्सिटी और NUALS जैसे लॉ कॉलेजों के छात्र समूह शामिल हैं।

पत्र के माध्यम से छात्रों ने कहाँ है, “हमारे पास निश्चित रूप से अन्य न्यायालयों से सीखने के लिए बहुत कुछ है। यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के देशों के साथ भारत में ईआईए नियमों के एक तुलनात्मक विश्लेषण पर यह देखा जा सकता है कि भारत में इस प्रक्रिया को जान-बूझकर सार्वजनिक और सरकारी एजेंसियों के प्रारंभिक अवस्था में दखल से दूर रखा है। छात्रों का सुझाव है कि भारत को एक ऐसी पर्यावरण नीति लागू करनी चाहिए जो रियो घोषणा के सिद्धांत 10 का पालन करती हो, जिसके अंतर्गत पर्यावरण की गुणवत्ता और समस्याओं पर स्वतंत्र रूप से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार, निर्णय लेने में सार्थक रूप से भाग लेने का अधिकार, और पर्यावरण के प्रवर्तन की तलाश करने का अधिकार शामिल है। साथ ही पर्यावरण कानूनों को लागू करवाने का अधिकार और पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए मुआवज़े का प्रावधान शामिल है।”

इसके पहले 25 जून 2020 को युगम नेटवर्क द्वारा समन्वित छात्रों ने ईआईए 2020 के बारे में अपनी चिंताओं के साथ एमओईएफसीसी को एक ईमेल भेजा। इस पत्र पर पूरे भारत के 60+ छात्र यूनियनों ने हस्ताक्षर किए थे। हालांकि, जवाब नहीं मिलने के बाद, उन्होंने 28 जून को 80+ छात्र यूनियनों के हस्ताक्षर के साथ एक और पत्र पीएमओ को भेजा। उन्होंने MyGov पोर्टल पर कई शिकायतें दर्ज कीं, लेकिन इन सभी को खारिज कर दिया गया।

पर्यावरण मंत्रालय और प्रधान मंत्री कार्यालय को पत्र लिखने के बाद अब छात्र इस उम्मीद में हैं कि सरकार उनके भविष्य से समझौता नहीं करेगी और विकास के नाम पर बड़े निजी निवेशकों को उनका भविष्य नहीं बेचा जाएगा। समाज के ज़िम्मेदार सदस्यों के रूप में  भारत के यह युवा भारत में एक ग्रीन रिकवरी का नेतृत्व करने के लिए चर्चा और नीति बनाने में शामिल होना चाहते हैं।