जनजातीय गौरव दिवस पर उलगुलान कार्यक्रम हुआ सफल- एबीवीपी

कार्यक्रम के माध्यम से भगवान विरसा मुंडा को अर्पित किए श्रद्धा सुमन

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

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शिमला। इकाई अध्यक्ष गौरव जी ने वयान जारी करते हुए कहा की हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में सफल हुआ सांस्कृतिक कार्यक्रम। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा जनजातीय गौरव दिवस पर आयोजित एक दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम उलगुलान का आयोजन किया गया। जिसमे भगवान विरसा मुंडा को याद किया गया। भगवान विरसा मुंडा प्रथम जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी उभर कर आए जिन्होंने देश को स्वतंत्र करवाने में बहुत योगदान दिया।

जब अंग्रेज कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हत्यारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई ने छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर महाविद्रोह छेड़ दिया जिस महाविद्रोह का नाम उलगुलान दिया गया।

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आदिवासी पुनरुत्थान के जनक बिरसा मुंडा का ध्यान धीरे-धीरे मुंडा समुदाय की गरीबी की ओर गया। आदिवासियों का जीवन अभावों से भरा हुआ था। और इस स्थिति का फायदा मिशनरी उठाने लगे थे और आदिवासियों को ईसाईयत का पाठ पढ़ाते थे। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि गरीब आदिवासियों को यह कहकर बरगलाया जाता था कि तुम्हारे ऊपर जो गरीबी का प्रकोप है वो ईश्वर का है। हमारे साथ आओ हमें तुम्हें भात देंगे कपड़े भी देंगे। उस समय बीमारी को भी ईश्वरी प्रकोप से जोड़ा जाता था।
20 वर्षीय बिरसा मुंडा वैष्णव धर्म की ओर मुड़ गए जो आदिवासी किसी महामारी को दैवीय प्रकोप मानते थे उनको वे महामारी से बचने के उपाय समझाते और लोग बड़े ध्यान से उन्हें सुनते और उनकी बात मानते थें। आदिवासी हैजा, चेचक, साँप के काटने बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, लेकिन बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है। वो आदिवासियों को धर्म एवं संस्कृति से जुड़े रहने के लिए कहते और साथ ही साथ मिशनरियों के कुचक्र से बचने की सलाह भी देते। धीरे धीरे लोग बिरसा मुंडा की कही बातों पर विश्वास करने लगे और मिशनरी की बातों को नकारने लगे। बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें धरती आबा कहा जाने लगा। लेकिन आदिवासी पुनरुत्थान के नायक बिरसा मुंडा, अंग्रेजों के साथ साथ अब मिशनरियों की आँखों में भी खटकने लगे थे। अंग्रेजों एवं मिशनरियों को अपने मकसद में बिरसा मुंडा सबसे बड़े बाधक बने।

उलगुलान कार्यक्रम को कार्यक्रम के मुख्यातिथि सूरत नेगी कार्यक्रम अध्यक्ष सीएम परशीरा जी और कार्यक्रम के मुख्या वक्ता आकाश नेगी जी ने सर्वप्रथम मां सरस्वती विवेकानन्द जी और विरसा मुंडा जी को साक्षी मानते हुए द्विप्रजवलन कर कार्यक्रम का आरंभ किया । उसके उपरांत सरस्वती बंदना करके सांस्कृतिक कार्यक्रम का आरंभ किया गया।

तत्पश्चात इकाई अध्यक्ष गौराव कुमार ने स्वागत भाषण में सभी अतिथियों का और छात्रों का स्वागत करते हुए कहा की आज का कार्यक्रम प्रदेश के प्रत्येक जनजातीय समुदाय को अर्पित उलगुलान कार्यक्रम के मुख्यावक्ता आकाश नेगी जी वक्तव्य रखते हुए जनजातीय वर्ग को देश का सबसे पुराना नागरिक बताया उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा की जनजातीय लोग प्रकृति प्रेमी होते हैं यदि जनजातीय क्षेत्रों में प्रकृति से कुछ जल जगह लकड़ी आदि वस्तु लेनी हो तो उसके लिए पूजा अर्चना कर के की वस्तु को मांगा जाता है उन्होंने बताया की जनजातीय ऐसा मानते हैं की प्रकृति पर पेड़ पौधों और जानवरों का भी उतना ही हक है जितना की मानव का है ऐसे विचार रखने पर ही जनजातीय अन्य लोगो से भिन्न हैं और उन्होंने बोला की हम गर्व महसूस करते हैं की हम जनजातीय क्षेत्र से आते हैं।

उलगुलान कार्यक्रम में प्रदेश के सभी जनजातीय क्षेत्रों के प्रसिद्ध संस्कृतियों को मंच दिया जिसमे गद्दीयाली नाटी, सिरमौर से हटी जनजाति को सम्मान सिरमौरी नाटी से किया , लाहौल की गर्फी, स्पीति के सेमछो और किन्नौरी क्यांग करके जनजातीय समुदाय को सम्मानित किया गया । अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने सिरमौर के विशेष समुदाय हाटी समुदाय को जनजातीय होने पर बधाई अर्पित करते हुए उन्हें जनजातीय मंच सौंपा।

साथ ही साथ कार्यक्रम के अध्यक्ष सीएम परशीरा जी ने अपना वक्तव्य रखा जिसमे परशिरा जी बताया की उलगुलान क्रांति के लिए उठाया गया बड़ा कदम था जिसका हेतु अंग्रेजो को भारत से बाहर खदेड़ना था उन्होंने बताया की झारखंड में एक व्यक्ति ने जन्म लिया जो की विरसा मुंडा नाम से जाने गए । जब वह पढ़ने की उम्र में पहुंचे थे उस समय उसके पिता ने उस समय के सबसे अच्छे स्कूल मिशनरी स्कूल में दाखिल करवाया वहा के अध्यापकों ने उनसे आग्रह किया कि यदि वह ईसाईयत अपनाते हैं तो उन्हें उनकी जमीन वापिस कर दी जाएगी उन्होंने ईसाईयत अपनाई परंतु विरसा मुंडा इस विषय को जल्दी ही समझ गए और उन्होंने ईसाइयत छोड़ कर वैष्णव धर्म अपना लिया था । उसके पश्चात उन्होंने जनजातियों को सुदृढ़ करने का काम शुरू कर दिया । उन्होंने बोला की अपने कामों के कारण ही विरसा मुंडा जी भगवान की उपाधि धारण कर सके थे।

उसके पश्चात कार्यक्रम के मुख्यातिथि सूरत नेगी ने अपना वक्तव्य रखा और बताया की जनजातियों ने आरंभ से ही देश की सेवा करी है देश को बचाने के लिए हर लड़ाई में जनजातीय लोग लड़े भी हैं उन्होंने बताया की महाराणा प्रताप की सेना के लिए अगर हथियार बनाने का काम किया तो राजस्थान के जनजातीय लोगो ने किया जब महाराणा प्रताप मेवाड़ छोड़ जंगलों में रहने लगे उस समय जनजातीय लोगो ने भी अपने घर त्यागे और उनके साथ देश और धर्म को बचाने के लिए घास की रोटियां खाई हैं।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं ने मनोरंजन किया और बताया की विश्वविद्यालय में लड़ाई और तनाव के माहौल से बाहर निकालने का काम एबीवीपी ने किया । अंत में इकाई मंत्री अविनाश ने धन्यवाद भाषण दिया और कार्यक्रम सफलता पूर्वक हुआ इसके लिए सभी कार्यकर्ताओं को शुभकामनाएं और बधाई अर्पित करी।