डे स्पेशल/ अपने अखड़, बेतरतीब ढंग और हाज़िर जवाबी के लिए मशहूर महाप्राण निराला हिंदी भाषा के कवियों और लेखकों में एक अलग स्थान रखते हैं। मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति निराला का अद्भुत प्रेम उनकी कविताओं और उनकी रचनाओं में सहज रूप से देखा जा सकता है। और इस बात की तस्दीक उनकी पहली कविता के नाम से की जा सकती है, जिसका नाम था जन्मभूमि।
आसान नहीं रहा निराला का जीवन:
21 फरवरी यानी आज ही के दिन 1897 में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में निराला का जन्म हुआ और उनका असल नाम सूर्यकांत त्रिपाठी था। कहते हैं एक अद्भुत व्यक्तित्व और विचारक का जन्म पीड़ा से गुजरकर होता है, और कुछ ऐसे ही वक्त से गुजरे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला। विश्व तब पहले विश्वयुद्ध की आग में झुलस रहा था और परतंत्र भारत अंग्रेजों की हाथों की कठपुतली था। उसी दौर में 1918 में स्पेनिश फ्लू इन्फ्लूएंजा का प्रकोप भी हुआ जिसके चलते निराला ने अपनी पत्नी और पुत्री समेत लगभग आधे परिवार को खो दिया और आधे परिवार का बोझ लिए उन्होंने आधा जीवन आर्थिक संघर्ष में गुजार दिया और उनका यह संघर्ष उनकी कविताओं और उनकी रचनाओं में आत्मा के जैसा है।
अपनी जिन रचनाओं से कवियों के बीच महाप्राण निराला बन गए सूर्यकांत त्रिपाठी:
सूर्यकांत त्रिपाठी को हिंदी और जन्मभूमि से बेहद प्यार था और वह इस बात को बार-बार दोहराते रहते थे। वह अक्सर कहते थे कि अगर बंगला उनकी मातृभाषा है तो हिंदी भी उनकी मातृभाषा है उनकी अधिकतर रचनाएं हिंदी में है। उनकी रचनाओं की बात करें तो अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा और बेला जैसी अधुभूत काव्यों की उन्होंने रचना की इसके अलावा उन्होंने अप्सरा, अलका, निरुपमा, समीर, कुल्ली, भाट और चोटी की पकड़ नामक उपन्यासों के भी रचना की। निराला ने अनेकों बंगला कार्यों का हिंदी अनुवाद भी किया और साथ ही हिंदी को कहानियां और निबंध भी दिए। हिंदी भाषा के लिए अपने इस अभूतपूर्व योगदान के लिए सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कवियों में महाप्राण निराला के नाम से प्रसिद्ध हुए।
क्यों ? तमतमाते हुए गांधी को पूछने पहुंच गए निराला
निराला का बेपरवाह और अखाड़ रवैया उनके निराला होने की नींव है। बात उस दौर की है जब देश में गांधी प्रभाव बेहद था और उस दौर में गांधी से सवाल करना अपने आप में बड़े साहस का काम था। हुआ यूं कि एक रोज महात्मा गांधी ने एक जनसभा के दौरान कह दिया कि हिंदी में रविंद्र नाथ ठाकुर जैसा कोई कवि नहीं है। इस बात से नाराज होकर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जब महात्मा गांधी जो 1936 के कांग्रेस अधिवेशन का हिस्सा बनने लखनऊ पहुंचे थे मिलने तो गुस्से में निराला महात्मा गांधी के पास पहुंचे और उनसे उनके इस बयान की वजह पूछी और साथ ही महात्मा गांधी को खरी-खरी सुनाते हुए कहा कि इंदौर अधिवेशन के दौरान उनका यह कथन के हिंदी मर रही है अनुचित है। निराला ने इन कथनों पर महात्मा से पूछा कि क्या वे हिंदी जानते हैं? उन्होंने कितने हिंदी के कवियों को पड़ा है? इसके बाद निराला ने अनेकों हिंदी के कवियों के नाम लिए और उनकी कविताओं का जिक्र किया हालांकि गांधीजी ने कहा कि वह हिंदी कम पढ़ पाते हैं और हिंदी के बारे में अधिक नहीं जानते इस पर हाजिर जवाब निराला ने कहा कि हालांकि मेरी कविताएं आम लोगों में अभी उतनी जगह नहीं बनाई पाई है परंतु अगर आप बैठे हैं तो मैं आपको हिंदी भाषा के कवियों और हिंदी की अभी भी जीवंत होने का उदाहरण दे सकता हूं हालांकि महात्मा गांधी ने तब कहा कि उनके पास इन सब के लिए वक्त नहीं है और रही बात निराला की कविताओं की तो उसके लिए गांधी ने कहा आप मुझे अपनी किताबें भेज दे मैं उन्हें जरूर पढ़ लूंगा। तो उस पर निराला ने व्यंगात्मक रूप में कहा कि पहले मुझे यह जानना होगा कि आपके पास हिंदी जानने वाले लोग भी हैं जो उन कविताओं को समझ सके क्योंकि आप तो पहले ही कह चुके हैं के हिंदी के बारे में आप ज्यादा नहीं जानते।
निराला के ऐसे बहुत से किससे हैं जहां उन्होंने हाजिर जवाबी वाकपटुता का अद्भुत तरीके से इस्तेमाल किया। वह फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे और स्पष्ट बोलने से नहीं हिचकते थे यही कारण है कि पश्चिम बंगाल से आने वाले एक बंगाली व्यक्ति हिंदी के महाप्राण निराला हो गए।