आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए प्रदेश के 10 वन मण्डलों मंे सरकारी वन भूमि पर खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति प्रदान की है। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश सरकार ने इस मामले की पूरजोर वकालत की थी जिसके फलस्वरूप शीर्ष अदालत ने राज्य के वन विभाग के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार किसानांे को खैर के पेड़ के दस वर्ष मंे कटान के कार्यक्रम से छूट देना चाहती है ताकि वे अपनी सुविधानुसार कटान कर सकंे इससे उनकी आर्थिकी को संबल मिलेगा। प्रदेश के ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, नालागढ़ और कुटलैहड़ वन मंडलों में खैर के पेड़ों के कटान के लिए कार्य योजना तैयार कर ली गई है और इन वन मंडलों में प्रति वर्ष 16500 वृक्षों का कटान निर्धारित किया गया हैं। खैर का कटान शीघ्र ही शुरू कर दिया जाएगा।
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मुख्यमंत्री ने कहा, राज्य के निचले क्षेत्रों में खैर के पेड़ों को व्यावसायिक रूप से उत्पादित करने से राज्य के राजस्व में तथा किसानांे की आय मंे वृद्वि होगी। प्रदेश के नाहन, पावंटा साहिब, धर्मशाला, नूरपुर और देहरा वन मंडलों के लिए शीघ्र ही कार्य योजना तैयार की जाएगी। इसके दृष्टिगत अधिकारी वनों के निरीक्षण शुरू करेंगे और इन वन मंडलों के लिए कार्य योजना तैयार करने के लिए खैर के पेड़ों की गणना की जाएगी। खैर के पेड़ का उपयोग इसके औषधीय गुणों के कारण बहुतायत किया जाता है।
इस पेड़ की छाल, पत्ते, जड़ और बीज में औषधीय गुण पाए जाते हैं। जलन को कम करने के लिए इसकी छाल का उपयोग किया जाता है। इस पेड़ को कत्थे का पेड़ भी कहा जाता है। कत्था पाचन मंे सहायक होता है। खैर से निकलने वाले गांेद का उपयोग दवा बनाने मंे किया जाता है। जंगली पौधा होने के कारण यह आसानी से उगाया जा सकता है। यह पौधा गर्म परिवेश मंे अच्छे से फलता-फूलता है और इसे अधिक देखभाल की जरूरत भी नहीं होती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार किसाना को केन्द्र मंे रखकर किसान हितैषी निर्णय और योजनाएं क्रियान्वित कर रही है।
वैज्ञानिक और नियोजित तरीके से खैर का कटान वनों के बेहतर प्रबंधन में सहायक होता है। इससे पुराने पेड़ों के स्थान पर नए व स्वस्थ खैर के पौधे उगते हैं। खैर के वृक्षों का समय पर कटान न होने से अधिकांश पेड़ सड़ जाते हैं जिससे बेहतर वन प्रबंधन नहीं हो पाता। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में खैर के पेड़ के कटान के परिणामों को जानने के लिए प्रायोगिक आधार पर पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने वन विभाग की राय पर सहमति व्यक्त कर यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है। .0.