आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 एक ऐतिहासिक अधिनियम है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक बच्चे को भारत के संविधान की भावना को दर्शाते हुए शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो। दिव्याग बच्चे किसी भी समाज का अभिन्न अंग होते हैं और सभी बच्चों पर लागू होने वाले अधिकारों में उन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए। दिवयांग बच्चों को शामिल किए बिना शिक्षा एक वास्तविकता नहीं हो सकती ,
इसलिए शिक्षा से संबंधित सभी मुख्यधारा के कार्यक्रमों को दिवयांगता संबंधित बच्चों के मुद्दों को अनिवार्य रूप से संबोधित करना चाहिए। सरकार की पहल पर नजर डालें तो यह काबिले तारीफ है। स्वतंत्रता के बाद विभिन्न आयोगों और सुधारों को संसद के पटल पर रखा गया और पारित किया गया। यदि हम कार्यान्वयन भाग को देखें तो यह स्वतंत्रता की शुरुआत से लेकर आज तक दयनीय है।
आज भी यह चिंता का विषय है कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा व्यवस्था में पूरी तरह से मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जा रहा है। शोध अध्ययनों के अनुसार किसी भी देश की कुल जनसंख्या में से 3% जनसंख्या विशेष आवश्यकता वाली होती है। इसका मतलब है कि भारत में 3.6 करोड़ व्यक्ति दिवयांग हैं। शारीरिक, भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक आदि अनेक बाधाएँ हैं, जिनको जब तक समाज दूर करने के लिए आगे नहीं आएगा, उसे दूर नहीं किया जा सकता है।
अधिक जानकारी के लिए हम नवीनतम दिवयांग व्यक्ति के अधिकार अधिनियम, 2016 और हिमाचल प्रदेश दिवयांग व्यक्तियों के अधिकार नियम, 2019 और नई शिक्षा नीति 2020 का उल्लेख कर सकते हैं। देश में दिवयांग बच्चों की शिक्षा के लिए विभिन्न मॉडल काम कर रहे हैं जैसे कि (क) आवासीय विद्यालय – केवल दिवयांग बच्चों के लिए विशेष स्कूल। (ख) एकीकृत शिक्षा- यानी विशेष बच्चों को कुछ ही गतिविधियों के लिए अन्य बच्चों के साथ शामिल किया जाता हैं। (ग) इंटीग्रेटेड एजुकेशन- इटिनरेंट मॉडल यानी यात्रा करने वाले शिक्षक विभिन्न स्कूलों का दौरा करते हैं जहां विशेष बच्चों का नामांकन होता है। (घ) समावेशी शिक्षा- यानी विशेष बच्चों को अन्य बच्चों के साथ स्कूलों में नामांकित किया जाता है और अन्य बच्चों के साथ कक्षाओं में भी भाग लिया जाता है लेकिन कक्षाओं के बाद/पहले संसाधन कक्ष में विशेष सहायता प्रदान की जाती है।
दूसरी ओर माता-पिता और समाज की रुचि केवल पेंशन योजनाओं और दिवयांग व्यक्तियों की मुफ्त परिवहन सुविधाओं की ओर है। दिवयांग व्यक्ति के अधिकार (आर० पी० डब्ल्यू० डी० ) अधिनियम 2016 में 21 प्रकार की अक्षमताओं का उल्लेख किया गया है। हल्के और मध्यम श्रेणियों की देखभाल विभिन्न गैर सरकारी संगठनों (एन० जी० ओ० ) और कुछ सरकारी संस्थानों द्वारा ही की जाती है लेकिन गंभीर और अति-गंभीर श्रेणियों की सबसे अधिक उपेक्षा की जाती है।
यहां तक कि माता-पिता भी अपने गंभीर रूप से दिवयांग बच्चों को समाज से छिपाते हैं। अगर स्तिथि स्त्री वर्ग की हो तो हालत और भी सबसे खराब हो जाते है शिक्षा व्यवस्था समाज की इस छुपी हुई बुराई को कैसे मिटा सकती है? जरूरी है कि आम आदमी सामाजिक सरोकार के लिए आगे आए। ये बच्चे देश के विकास में कैसे योगदान दे सकते हैं, यह आज भी चिंता का विषय है। किसी भी देश की वास्तविक अर्थव्यवस्था का अंदाजा सबसे कमजोर वर्ग यानी दिवयांग व्यक्ति की स्थिति से लगाया जा सकता है।
सरिता चौहान (विशेष शिक्षक)
रा० व० मा० पाठशाला
पोर्टमोर शिमला