आदर्श हिमाचल ब्यूरो
भारत के ज्यादातर इलाके भीषण तपिश से बेहाल हैं और खुले आसमान में काम करने वाले श्रमिकों का सबसे बुरा हाल है। पारा 40 डिग्रीज़ सेल्सियस के आस पास पहुँच जाये तो घबराहट होने लगती है। लेकिन क्या आपको पता है कि 32 डिग्रीज़ सेल्सियस ही जानलेवा हो सकता है?
इस बातको समझने के लिए आपका तापमान के उस स्वरूप के बारे में जानना ज़रूरी हो जाता है जिसके बारे में हममें से ज्यादातर लोगों ने कभी नहीं सुना होगा। इस तपिश का यह स्वरुप है वेट बल्ब टेंपरेचर।
वेट बल्ब टेंपरेचर के जरिए तपिश और उमस को मापा जाता है। यहां तक कि पूरी तरह से स्वस्थ तथा गर्मी में रहने के अभ्यस्त लोग भी 32 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान (टीडब्ल्यू) पर काम करने लायक नहीं रहते और अगर ऐसे लोग 35 डिग्री सेल्सियस टीडब्ल्यू पर छांव में बैठें तो भी 6 घंटे के अंदर उनकी मौत हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन इन वेट बल्ब टेंपरेचर के खतरे को लगातार बढ़ा रहा है। इस लिंक पर आप भारत के तमाम शहरों के वेट बल्ब तापमान को देख सकते हैं।
क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा इस विषय को समझाने के लिए एक ब्रीफिंग तैयार की है जिसमें कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई गयी हैं जो कि इस प्रकार हैं।
मानव शरीर को गर्मी किस तरह प्रभावित करती है
हीट स्ट्रोक से चक्कर आने और जी मिचलाने से लेकर अंगों में सूजन, बेचैनी, बेहोशी और मौत जैसे लक्षण हो सकते हैं। गर्मी के संपर्क में आने से 5 शारीरिक तंत्र सक्रिय होते हैं :
1. इस्किमिया (कम या अवरुद्ध रक्त प्रवाह)
2. हीट साइटोटोक्सिसिटी (कोशिका मृत्यु)
3. दाहक प्रतिक्रिया (सूजन)
4. प्रसारित इंट्रावास्कुलर जमावट (असामान्य रक्त के थक्के)
5. रबडोमायोलिसिस (मांसपेशियों के तंतुओं का टूटना)
ये तंत्र सात महत्वपूर्ण अंगों (मस्तिष्क, हृदय, आंतों, गुर्दे, यकृत, फेफड़े और अग्न्याशय) को प्रभावित करते हैं। इन तंत्रों और अंगों के 27 घातक संयोजन हैं जिनके बारे में बताया गया है कि वे गर्मी के कारण उत्पन्न होते हैं।
गर्मी किस तरह भारत की उत्पादकता पर असर डालती है
वैज्ञानिकों ने भारत को सबसे गर्म महीनों में, जब डब्ल्यूबीजीटी 30 से 33 डिग्री सेल्सियस के बीच होती है, के दौरान श्रम उत्पादकता के लिहाज से उच्च जोखिम वाले देश की श्रेणी में रखा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में इस वक्त भयंकर गर्मी और उमस के कारण घरों के बाहर काम करने के घंटों में 21% का नुकसान हो रहा है। आरसीपी 8.5 के तहत वर्ष 2030 तक इसके 24% और 2050 तक 30% तक बढ़ जाने की आशंका है।
मौजूदा वर्ष में हिंदुस्तान के ज्यादातर इलाकों में भीषण गर्मी और उमस के जानलेवा संयोजन की वजह से हर साल 12 से 66 दिनों तक श्रम उत्पादकता का नुकसान होता है। दुनिया में कहीं–कहीं पर यह संयोजन जानलेवा साबित होते हैं लेकिन भारत में ऐसा होना जरूरी नहीं है। भारत के पूर्वी तटीय इलाकों से सटे हॉटस्पॉट्स यानी कोलकाता में 124 दिन, सुंदरबन में 171 दिन, कटक में 178 दिन, ब्रह्मापुर में 173 दिन, तिरुअनंतपुरम में 113 दिन, चेन्नई में 140 दिन, मुंबई में 47 दिन और नई दिल्ली में करीब 63 दिन इस भीषण संयोजन की भेंट चढ़ जाते हैं।
उत्सर्जन की विभिन्न स्थितियों में वेट बल्ब तापमान वाले दिनों की संख्या में अनुमानित बढ़ोत्तरी
आरसीपी 8.5 की स्थितियों में- वर्ष 2050 तक वेट बल्ब टेंपरेचर वाले दिनों की संख्या कोलकाता में 176 दिन, सुंदरबन में 215 दिन, कटक में 226 दिन, ब्रह्मापुर में 233 दिन, तिरुअनंतपुरम में 314 दिन, चेन्नई में 229 दिन, मुंबई में 171 दिन और नई दिल्ली में तकरीबन 99 दिन तक हो जाएगी।
आरसीपी 8.5 की स्थितियों में- वर्ष 2100 तक कोलकाता में ऐसे दिनों की संख्या बढ़कर 221 हो जाएगी। वहीं, सुंदरबन मे 253, कटक में 282, ब्रह्मापुर में 285, तिरुअनंतपुरम में 365, चेन्नई में 309, मुंबई में 261 और नई दिल्ली में करीब 131 हो जाएगी। वेट बल्ब टेंपरेचर की वजह से पश्चिमी तटीय इलाके ज्यादा प्रभावित होंगे, जिनमें गोवा में 269 दिन (मौजूदा वक्त में 35 दिन), कोच्चि में 362 दिन (वर्तमान समय में 98 दिन) और बेंगलुरु में 349 दिन (वर्तमान समय में 72 दिन) वेट बल्ब टेंपरेचर की भेंट चढ़ जाएंगे।
आरसीपी 2.6 की स्थितियों में- वर्ष 2100 तक कोलकाता में 157 दिन, सुंदरबन में 193 दिन, कटक में 216 दिन, ब्रह्मापुर में 218 दिन, तिरुअनंतपुरम में 240, चेन्नई में 179, मुंबई में 112, नई दिल्ली में 81, गोवा में 94, बेंगलुरु में 163 और कोच्चि में 206 दिन।
वेट बल्ब और वेट बल्ब ग्लोब टेंपरेचर :
गर्मियों में इंसानी शरीर पसीने के जरिए खुद को ठंडा करता है लेकिन अगर उमस का स्तर बहुत ज्यादा हो जाए तो पसीना काम नहीं करता और खतरनाक ओवरहीटिंग का जोखिम पैदा हो जाता है। वेट बल्ब टेंपरेचर डीडब्ल्यू गर्मी और उमस को नापने का एक पैमाना है और इस प्रकार से यह इस बात का अनुमान लगाने में उपयोगी है कि मौसमी परिस्थितियां इंसानों के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। इसे थर्मोमीटर के बल्ब के चारों तरफ एक गीला कपड़ा लपेटकर मापा जाता है और यह उस न्यूनतम तापमान का प्रतिनिधित्व करता है जो आप पानी से वाष्पीकरण (जैसे कि पसीना निकलना) के जरिए कम कर सकते हैं। 100% आर्द्रता के तहत टीडब्ल्यू ड्राई बल्ब टेंपरेचर के बराबर है। वहीं, कम आर्द्रता की स्थितियों में यह तापमान बहुत अलग हो सकते हैं।
गर्मी और नमी को मापने के अन्य रास्तों में वेट बल्ब ग्लोब टेंपरेचर और हीट इंडेक्स भी शामिल है वेट बल्ब ग्लोब टेंपरेचर डब्ल्यूबीजीटी में टीडब्ल्यू को शामिल किया जाता है लेकिन इसमें सोलर रेडिएशन और हवा की गति मापने के लिए अतिरिक्त ग्लोब थर्मामीटर का इस्तेमाल किया जाता है। डब्ल्यूबीजीटी अक्सर बाहर कसरत करने वाले लोगों जैसे कि सैनिक या एथलीटों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इसे यह मानकर भवनों के अंदर भी इस्तेमाल किया जाता है कि इसमें किसी सोलर रेडिएशन यह हवा का दखल नहीं है या फिर सरलीकृत डब्ल्यूबीजीटी (0.7 टीडब्ल्यू+0.3 ग्लोब टेंपरेचर) का इस्तेमाल करके भी ऐसा किया जा सकता है। डब्ल्यूबीजीटी आमतौर पर टीडब्ल्यू के मुकाबले कुछ डिग्री कम होता है।
कुछ सरकारी भयंकर लू की चेतावनी तैयार करने के लिए हीट इंडेक्स का इस्तेमाल करते हैं। हीट इंडेक्स (एचआई) छांव में हवा के तापमान और संबंधित आर्द्रता का संयोजन होता है। ठीक उसी तरह जैसे टीडब्ल्यू में होता है, बस इसमें छांव में हवा के तापमान का हमेशा इस्तेमाल नहीं किया जाता।
32 डिग्री सेल्सियस के ऊपर काम करना मुश्किल
32 डिग्री सेल्सियस टीडब्ल्यू के करीब तापमान होने पर स्वस्थ और गर्मी में रहने के आदी लोगों के लिए भी काम करना नामुमकिन हो जाता है। यहां तक कि सांस, दिल तथा गुर्दे से संबंधित बीमारी से ग्रस्त बुजुर्ग लोगों और मेहनत भरी गतिविधि कर रहे व्यक्तियों पर 26 डिग्री सेल्सियस टीडब्ल्यू की स्थितियों में गंभीर या घातक हीट स्ट्रोक का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
सरलीकृत अवस्था में अगर डब्ल्यूबीजीटी में वैश्विक स्तर पर 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होती है तो वैश्विक श्रम क्षमता 80% से घटकर 70 फीसद रह जाएगी और अगर तापमान में यह वृद्धि 4 डिग्री सेल्सियस की हुई तो यह क्षमता 60 फीसद से नीचे चली जाएगी। ट्रॉपिकल इलाकों में श्रम क्षमता में यह गिरावट और भी ज्यादा होगी। उन क्षेत्रों में में 2 डिग्री सेल्सियस डब्ल्यूबीजीटी बढ़ने पर श्रम क्षमता 70% से घटकर 50 फीसद हो जाएगी और 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी होने पर यह 40 प्रतिशत रह जाएगी (बुजान और ह्यूबर 2020)।
गहन अवलोकन : भारत
वर्ष 2015 में भारत में बढ़ी गर्मी के दौरान आंध्र प्रदेश में टीडब्ल्यू का स्तर 30 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। उस दौरान गर्मी में रहने के आदी होने के बावजूद करीब 2500 लोगों की गर्मी के कारण मौत हुई थी और एयर कंडीशनिंग की मांग बढ़ने की वजह से कुछ शहरों में बिजली की किल्लत पैदा हो गई थी। उस वक्त पशुधन मृत्यु दर भी काफी ज्यादा हो गई थी। उदाहरण के तौर पर मई 2015 में भारत में ही एक करोड़ 70 लाख चूजों की मौत हुई थी (रायटर)।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में भीषण गर्मी और उमस की वजह से इस वक्त खुले आसमान के नीचे काम करने के घंटों का 21% का नुकसान हो रहा है (मैकिंसे 2020)। आरसीपी 8.5 के तहत वर्ष 2030 तक इसमें 24% और 2050 तक 30 फीसद की बढ़ोत्तरी हो सकती है (मैकिंसे 2020)।
वैज्ञानिकों ने भारत को सबसे गर्म महीनों में, जब डब्ल्यूबीजीटी 30 से 33 डिग्री सेल्सियस के बीच होती है, के दौरान श्रम उत्पादकता के लिहाज से उच्च जोखिम वाले देशों की श्रेणी में रखा है। वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की स्थिति में डब्ल्यूबीजीटी का स्तर 34 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा हो जाएगा और देश का ज्यादातर हिस्सा कार्य के घंटों के नुकसान के लिहाज से ‘अत्यधिक जोखिम’ वाली श्रेणी में आ जाएगा।