मीरा अपने साथ यहां लेकर आई थी श्रीकृष्ण की प्रतिमा, जानिए कहा है श्रीकृष्ण के साथ मीरा विराजमान

हिमाचल के नूरपुर का बृजराज मंदिर विश्व का पहला व इकलौता मंदिर जहां श्रीकृष्ण के साथ है मीरा विराजमान, वृंदावन से सौ साल पुरानी हैं यहां की कृष्ण जन्माष्टमी

राकेश पठानिया के प्रयासों से नौ साल पहले जिला स्तरीय तो इस साल पहली बार मना रहे राज्य स्तरीय जन्माष्टमी

शिमला: इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बन अदभुत जयंती योग बन रहा है. हजारों साल में ये योग बनता है. यही योग द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दौरान भी बना है. इसलिए 30 अगस्त को देश भर में धूमधाम से मनाई जाने वाली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष मानी जा रही है. भगवान श्री कृष्ण का अवतरण 3228 ईसवी वर्ष पूर्व हुआ था. 3102 ईसवी वर्ष पूर्व कान्हा ने इस लोक को छोड़ भी दिया. विक्रम संवत के अनुसार, कलयुग में उनकी आयु 2078 वर्ष हो चुकी है. अर्थात भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी लोक पर 125 साल, छह महीने और छह दिन तक रहे. उसके बाद स्वधाम चले गए.

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तो आइए आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के इस अदभुत संयोग से दिन आपको हिमाचल के एक एतिहासिक मंदिर की बारे में जानकारी देते हैं. इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बहुत कम लोगों को ये जानकारी रहै कि हिमाचल के जिला कांगड़ा के नूरपुर विधानभा क्षेत्र में विश्व का पहला व इकलौता मंदिर है जहां श्रीकृष्ण के साथ मीरा विराजमान है. बृज राज स्वामी मन्दिर नूरपुर हिमाचल प्रदेश का प्रमुख द्वार प्राकृतिक पहाड़ियों के मनमोहक दृश्य स्वस्थ जल वायु से संयुक्त समुन्द्र तल से 2125 फुट की ऊँचाई पर बसा नगर नूरपुर पठानकोट कुल्लू मार्ग पर स्थित आज भी ऐतिहासिक पृष्ठों से जुड़ा है. इस नगर का पुराना नाम घमड़ी था नूरजहाँ के आगमन पर इस मनमोहक क्षेत्र का नाम नूरपुर पड़ा .

 

नूरपुर के प्राचीन किला मैदान में स्थित भगवान श्री बृजराज स्वामी जी का ये मंदिर क्षेत्रवासियों ही नहीं बल्कि पूरे देश भर में आस्था का केंद्र है. यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, यहां भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि मीरा बाई की मूर्ति स्थापित है. यह दोनों प्रतिमाएं ऐसी लगती हैं मानों आपके सामने साक्षात भगवान श्री कृष्ण व मीरा बाई खड़े हों. प्रेम व आस्था के संगम के प्रतीक इस मंदिर का नूर जन्माष्टमी को छलक उठता है. जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इस ऐतिहासिक मंदिर में रौनक देखते ही बनती है, जहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग मंदिर में शीश नवाते हैं.

मंदिर से जुड़ी है ये रोचक कथा

इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा जुड़ी हुई है. यह उस समय की बात है (1629 से 1623 ई.) जब नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ चितौडग़ढ के राजा के निमंत्रण पर वहां गए. राजा जगत सिंह व उनके पुरोहित को रात्रि विश्राम के लिए जो महल दिया, उसके बगल में एक मंदिर था. जहां रात के समय राजा को उस मंदिर से घुंघरूओं तथा संगीत की आवाजें सुनाई दी. राजा ने जब मंदिर में बाहर से झांक कर देखा तो एक औरत कमरे में श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाते हुए नाच रही थी.

राजा ने सारी बात राज पुरोहित को सुनाई. पुरोहित ने भी वापसी पर राजा (चितौडग़ढ़) से इन मूर्तियों को उपहार स्वरूप मांग लेने का सुझाव दिया, क्योंकि श्री कृष्ण व मीरा की यह मूर्तियां साक्षात हैं. जगत सिंह ने पुरोहित बताए अनुसार वैसा ही किया. चितौडग़ढ़ के राजा ने भी खुशी-खुशी वे मूर्तियां व मौलश्री का पेड़ राजा जगत सिंह को उपहार स्वरूप दे दिया.

उसके बाद नूरपुर के राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का रूप देकर इन मूर्तियों को वहां पर स्थापित कर दिया. राजस्थानी शैली की काले संगमरमर से बनी श्रीकृष्ण व अष्टधातु से बनी मीरा की मूर्ति आज भी नूरपुर के इस ऐतिहासिक श्री बृजराज स्वामी मंदिर में शोभायमान है. मंदिर की भित्तिकाओं पर कृष्ण लीलाओं का चित्रण दर्शनीय है. इस स्थान पर हर साल जन्माष्टमी का उत्सव हर साल बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है.

इस साल पहली बार मना रहे राज्य स्तरीय श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

इस साल इस ऐतिहासिक मंदिर में पहली बार राज्य स्तरीय श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है. इसका सारा श्रेय यहां के विधायक व प्रदेश के काबिना मंत्री राकेश पठानिया को जाता है. उनके ही प्रयासों से आज से नौ साल पहले वर्ष 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल नूरपुर के जन्माष्टमी मेले को जिलास्तरीय का दर्जा देने की घोषणा की थी. अब जबकि राकेश पठानिया खुद मंत्री हैं तो उन्होंने अपने प्रयासों से कैबिनेट में राज्य स्तरीय दर्जा दिलवाया है.

वन, युवा सेवाएं व खेल मंत्री राकेश पठानिया ने आदर्श हिमाचल को फोन पर बताया कि उन्हें बेहद खुशी है कि इस मंदिर में पहली बार इस साल इस ऐतिहासिक मंदिर में मनाई जाने वाली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को प्रदेश सरकार ने राज्य स्तरीय दर्जा प्रदान किया गया है. उन्होंने कहा कि यहां की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास बहुत पुराना है, यहां तक कि वृंदावन से सौ साल पहले से यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है.

पठानिया ने बताया कि माना जाता है कि श्रीकृष्ण मीरा के जरिए ङी अपनी लीलाएं रचा करते थे. इतिहास बताता है कि मीरा रानी यहां श्रीकृष्ण की प्रतिमा अपने साथ लेकर आई थी औऱ् यहां बहुत समय तक श्रीकृष्ण की पूजा-आराधना की थी.