सेब में स्कैब की समस्या से छुटकारा पाने के लिए कारगर हैं यह स्प्रे, आप भी जानिए

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। सेब में स्कैब की समस्या, जो लगभग समाप्त समझी जा रही थी, कुछ क्षेत्रों में इसका प्रकोप फिर दिखाई दिया है। इस रोग की समस्या कुल्लू, मंडी, शिमला, चंबा व किन्नौर के कुछ क्षेत्रों में देखने में आई है। स्कैब के साथ, पत्ते झड़ने व अल्टरनेरिया धब्बा रोग की समस्या ने बागवानों को परेशान कर दिया है। इसी कारण बागवानी विभाग और औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के विज्ञानी करीब दो सप्ताह से बगीचों का निरीक्षण कर बागवानों को बचाव के उपायों की जानकारी के साथ पूरी रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं।
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बागवानी विभाग के बताए स्प्रे शेडयूल के अनुसार जो बागवान स्प्रे कर रहे हैं उनके बगीचों में यह समस्या नहीं है। इस बार नमी अधिक होने के कारण कई वर्षो के बाद स्कैब व अन्य रोगों ने वापसी की है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि बहुत से बागवानों की वर्तमान फसल तो चौपट हो गई है, लेकिन अगली फसल भी प्रभावित होने की आशंका है। बागवानी विशेषज्ञों ने शेडयूल के अनुसार दवाओं के छिड़काव की सलाह दी है। प्रदेश के सात जिलों शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौर, सिरमौर व लाहुल स्पीति में सेब का व्यवसायिक उत्पादन किया जाता है।

बागवान ऐसे करें स्प्रे…..

-प्रोपीनेब 0.3 फीसद यानी 600 ग्राम 200 लीटर पानी में घोल स्प्रे करें।

-डोडीन 0.075 फीसद यानी 150 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी।

-मीटिरम 55, पाइक्लोस्ट्रोबिन पांच व डब्ल्यूजी 0.1 फीसद 200 लीटर पानी।

-टेबुकोनाजोल आठ फीसद व कप्तान 32 फीसद एससी 500 एमएल प्रति 200 लीटर पानी।

-फलक्सापाइरोकसाड व पाइरक्लोस्ट्रोबिन 500, 20 एमएल प्रति 200 लीटर पानी।

-वहीं, कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में टेबुकोनाजोल 50 फीसद व ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25 फीसदी डब्ल्यूजी 0.04 फीसद 200 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करने की सलाह दी है। ——-

क्या है स्कैब रोग

यह रोग वेंचूरिया इनेक्वैलिस नामक फफूंद से होता है। रोग का आक्रमण सबसे पहले सेब की कोमल पत्तियों पर होता है। पत्तियों पर हल्के जेतूनी हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में भूरे व काले हो जाते हैं। कभी-कभी संक्रमित पत्ते मखमली काले रंग से ढक जाते हैं, जिसे शीट स्कैब कहते हैं। रोगग्रस्त पत्तियां समय से पूर्व पीली पड़ जाती हैं। धब्बे फलों पर भी दिखाई देते हैं। अधिक संक्रमण होने पर फल विकृत हो जाते हैं व उनमें दरारें पड़ जाती हैं।

कई जिलों में स्कैब रोग पाया गया है। बागवानों को बगीचे में इसकी जानकारी दी जा रही है। इसके लिए टीमें बनाई हैं। बागवान शेड्यूल के आधार पर स्प्रे करें।