शारीरिक व मानसिक विकास के लिए आवश्यक है शैशवावस्था व बाल्यावस्था सुपोषित हो – जय राम ठाकुर

आदर्श हिमाचल ब्यूूरो,

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शिमला। स्वस्थ शरीर एवम् शारीरिक व मानसिक विकास के लिए आवश्यक है कि शैशवावस्था व बाल्यावस्था सुपोषित हो | मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इसी उद्देश्य को साकार रूप देते हुए “मुख्यमंत्री बाल सुपोषण योजना” को मंजूरी प्रदान की गई है ।हिमाचल प्रदेश में एन.एफ.एच.एस.-4 की तुलना में एन.एफ.एच.एस.-5 में पोषण संकेतकों में गिरावट देखी गई है ।

हिमाचल में एन.एफ.एच.एस-5 फैक्टशीट के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई) एन.एफ.एच.एस.-4 में 26.3 फीसदी से बढ़कर एन.एफ.एच.एस.-5 में 30.8 फीसदी हो गया है । वेस्टिंग (ऊंचाई के लिए कम वजन) को एन.एफ.एच.एस-4 में 13.7 फीसदी से बढ़ कर एन.एफ.एच.एस-5 में 17.4 फीसदी हो गया है । 5 साल से कम उम्र के बच्चों (ऊंचाई के लिए कम वजन) का प्रतिशत एन.एफ.एच.एस-4 में 21.2 फीसदी से बढ़कर एन.एफ.एच.एस.-5 में 25.6 फीसदी हो गया है । बच्चों में एनीमिया कुपोषण का एक मुख्य कारक है । 6 से 59 महीने के बच्चों और किशोर लड़कियों (15-19 वर्ष) में एनीमिया क्रमशः 55.4 फीसदी और 53.2 फीसदी हैI डायरिया और निमोनिया कुपोषण में 25 प्रतिशत का योगदान करते हैं ।

यह जानकारी देते हुए स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि यह योजना केंद्र और राज्य सरकार तथा महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, शिक्षा विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संयुक्त प्रयासों से चलाई जाएगी । इस योजना के माध्यम से विभिन्न हितधारकों का अभिसरण कर गहन हस्तक्षेपों द्वारा माताओं और बच्चों के पोषण स्तर में महत्त्वपूर्ण सुधार की परिकल्पना की गई है। राज्य सरकार ने सप्त स्तम्भ दृष्टिकोण के माध्यम से इस प्रयास को साकार करने के लिए नीति आयोग के साथ व्यापक परामर्श किया है । इसके घटकों में दस्त का शीघ्र पता लगाना और इसका उपचार, पहचान किए गए उच्च जोखिम समूहों की सघन निगरानी और देखभाल, विशेष एसएनपी-उच्च जोखिम वाले बच्चों के लिए प्रोटीन युक्त भोजन और बेहतर भोजन पद्धतियां अपनाना, बच्चों और किशोरियों में एनीमिया के लिए विभिन्न हस्तक्षेप, उच्च जोखिम वाले गर्भधारण विशेष रूप से उच्च रक्तचाप और एनीमिया, कुपोषित बच्चों का उपचार और अनुवर्ती कार्यवाही तथा सामाजिक व्यवहार परिवर्तन के लिए रणनीतियां शामिल हैं।

विभागीय प्रवक्ता ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि सप्त स्तम्भ दृष्टिकोण में डायरिया और निमोनिया की रणनीतियों का शीघ्र पता लगाना और उनका उपचार करना, पहचाने गए उच्च जोखिम समूहों की गहन निगरानी और देखभाल, विशेष एसएनपी-उच्च जोखिम वाले बच्चों के लिए प्रोटीन युक्त भोजन और भोजन आचरण में सुधार, बच्चों और किशोर लड़कियों में एनीमिया के लिए हस्तक्षेप, हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का पता लगाना खासकर हाइपरटेंशन और एनीमिया, कुपोषित बच्चों का उपचार और अनुवर्ती कार्रवाई और सामाजिक व्यवहार परिवर्तन रणनीतियाँ तैयार करना सम्मिलित हैं | इस योजना के लिए 64.84 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है। यह दस्त, निमोनिया और एनीमिया जैसी बीमारियों पर नियंत्रण पा कर बचपन में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए मील पत्थर साबित होगी ।

यह जन आन्दोलन के रूप में केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, इसमें हितधारक बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान करवाने वाली माताओं के स्वास्थ्य के लिए योजना बनाने, कार्यान्वित करने और निगरानी के लिए शामिल किया जाएगा। इस योजना से हिमाचल प्रदेश एनएफएचएस-5 मानकों में समयबद्ध तरीके से सुधार करने में सक्षम होगा ।