शिमला: हिमाचल प्रदेश में आजकल सेबों की बहार आयी हुई है। करीब-करीब तीन साल बाद प्रदेश में सेब की बम्पर फसल हुई है और किसानों को उम्मीद है की इस साल उन्हें पिछले सालों से अच्छा मुनाफा मिलेगा। लेकिन ये दृष्टिकोण सिर्फ उन आम किसानों का है जो की अपनी फसल बेचने में व्यस्त हैं। अगर किसान नेताओं की बात सुनें तो लगेगा की प्रदेश में किसानों को लूटा जा रहा है और उनके राजनितिक चश्मे से उन्हें इस पूरी समस्या की वजह सिर्फ एक कंपनी नजर आती है – अदाणी एग्री फ्रेश लिमिटेड।
इन किसान नेताओं के हिसाब से एक तरफ अदाणी एग्री फ्रेश लिमिटेड किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य नहीं देती है, दूसरी तरफ ये मंडियों में मिलने वाली कीमतों को भी प्रभावित करती है। लेकिन वर्तमान पर नज़र डालें तो परिस्थिति कुछ और HI नजर आती है। पहली बात तो ये है की हिमाचल प्रदेश सालाना करीब दस लाख टन सेब पैदा करता है जिसमें से अदाणी एग्री फ्रेश लिमिटेड सिर्फ 22,500 टन ही खरीदता है और इस कंपनी की सेब खरीदने की प्रक्रिया मंडियों द्वारा मूल्य निर्धारित करने के दो से चार हफ्ते बाद शुरू होती है। इस साल भी जहाँ मंडियों ने जून के आखिरी या जुलाई के पहले सप्ताह से सेब खरीदने शुरू कर दिए थे, वहीँ अडानी एग्री फ्रेश ने 15 अगस्त को अपने मूल्य घोषित किये थे।
इस साल किसान नेताओं ने कई भड़काऊ भाषणों से पुरे हिमाचल में इस बात को फैलाने की कोशिश की कि अदाणी एग्री फ्रेश फिर से कम कीमतों पर सेब खरीद रहा है। जबकि सच्चाई ये है की अदाणी एग्री फ्रेश आज भी पिछले साल से प्रति किलो चार रूपए ज्यादा देकर सेब खरीद रहा है। आज जहाँ मंडियों में उच्चतम किस्म के सेब की कीमत 55 रूपए है, वहीँ अदाणी एग्री फ्रेश किसानों को 76 रूपए प्रति किलो दे रहा है। साथ ही ये भी ध्यान देने वाली बात है की अदाणी अग्रि फ्रेश के अलावा हिमाचल में करीब करीब आधा दर्जन और निजी कंपनियां सेब के कारोबार में लगी हुई है। लेकिन या तो उनमें से अधिकतर ने अभी तक सेब खरीदना शुरू नहीं किया है, या कम मूल्यों पर खरीदी कर रहे हैं। कुछ कंपनियां जो की प्रति वर्ष 5,000 से 10,000 टन तक सेब खरीदती हैं, आज भी उच्चतम किस्म के सेबों के लिए मात्रा 72 रूपए प्रति किलो दे रही हैं। बाकी बड़ी कंपनियां इस बात के इंतज़ार में लगी हुई हैं की कब कीमतें घटें और वो अपनी खरीदी शुरू करें।
दूसरा आश्चार्य है किसान नेताओं का सेलेक्टिव या चुन का धरना प्रदर्शन करना। पिछले हफ्ते कुछ दिग्गज किसान नेताओं ने अदाणी एग्री फ्रेश के तीनों प्रोक्योरमेंट सेण्टर पर दिन भर धरना प्रदर्शन करके किसी भी तरह का काम नहीं होने दिया। नतीजा ये निकला की सेब बेचने वाले किसानों की प्रतीक्षा अवधि 48 घंटे से बढ़ कर 76 घंटे हो गयी और मजबूरीवश अदाणी एग्री फ्रेश को रामपुर और सैंज में दो से तीन दिनों के खरीदी को रोकना पड़ा। ठीक इसके एक दिन बाद मंडियों ने एक सबसे छोटे आकार वाले सेब की कीमत को दो रूपए कम कर दिया। लेकिन दिन भर अफवाह ये उड़ती रही की अदाणी एग्री फ्रेश ने कीमतें घटा दी हैं।
एक और बात जो किसान नेता कभी नहीं बताएँगे वो हैं अदाणी एग्री फ्रेश के साथ जुड़ने के फायदे। अदाणी एग्री फ्रेश सेब की क्वालिटी खराब ना हो इसलिए किसानों को बिना किसी कीमत के प्लास्टिक क्रैट उपलब्ध कराती है जिससे किसानों को बोरियों और गत्ते के डब्बों में सेब भर के लाने की जरुरत न पड़े। प्लास्टिक क्रैट में जहाँ सेबों की गुणवत्ता बरकरार रहती है, वहीँ उनके चयन (सॉर्टिंग, ग्रेडिंग इत्यादि) में भी मदद मिलती है। साथ ही किसानों को उनके फसल की कीमत भी दो – चार दिनों में सीधे बैंकों में जमा करा दी जाती है। दूसरी तरफ मंडियों में अक्सर छोटे किसानों को बड़े किसानों की तुलना में अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है और उनका भुगतान भी समय पर नहीं होता है। साथ ही अदाणी एग्री फ्रेश साल भर किसानों से संपर्क बनाये रखता है और उन्हें मौसम, खाद, पानी, कीटनाशक, इत्यादि से सम्बंधित जरूरी जानकारियां उपलब्ध कराता रहता है। इन्ही वजहों से हर साल खरीदी के सीजन में अदाणी एग्री फ्रेश के गोदामों के बाहर सेब से लदे ट्रकों और लारियों की लम्बी लम्बी कतारें लगी रहती हैं .
साथ ही जिन जिन जगहों पर इन किसान नेताओं ने अपने मुट्ठी भर समर्थकों के साथ काम-रोको धरना दिया था वो ये भूल गए की प्रदेश में अन्य निजी कंपनियां भी हैं जो की या तो काम मूल्यों पर सेब खरीद रही हैं, नहीं तो कीमतों के गिरने का इंतज़ार कर रही हैं। इन में से कई निजी कंपनियों के गोदाम तो अदाणी एग्री फ्रेश के गोदाम के दो-चार किलोमीटर के दायरे में ही हैं, लेकिन धरना के लिए निशाना सिर्फ एक कंपनी को ही बनाया जाता है।
सेब हिमाचल प्रदेश के अर्थव्यवस्था के लिए अति-आवश्यक सूची में आता है और यहाँ उगने वाले सेबों ने अब पुरे देश-दुनिया में अभी नाम कमा लिया है। इस अभूतपूर्व सफलता के पीछे निजी कंपनियों समेत सबने अपना योगदान दिया है। लेकिन आज सिर्फ राजनीती के चक्कर में कुछ लोग इन निजी कंपनियों को निशाना बनाने में लगे हुए हैं। जबकि होना ये चाहिए था की सब साथ मिल कर किसानों और प्रदेश के हित में कार्यरत होते।