तीन कृषि कानूनों का प्रदेश की कृषि व बागवानी पर पड़ेगा बुरा असर – किसान संघर्ष समिति

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। किसान संघर्ष समिति की आज सुरिन्दर ठाकुर की अध्यक्षता में ठियोग में बैठक आयोजित की गई। इसमे समिति के 22 सदस्यों ने भाग लिया। जिनमें संजय चौहान, संदीप वर्मा, सुशील चौहान, विजय, काकू, मनिंदर, संजय धनी,राजिंदर चौहान, ईश्वर, कामना दास, सरोज चौहान, राजीव, रमेश, चन्द्र सैन आदि ने इस बैठक में भाग लिया ।इस बैठक में तीन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के लिए दिल्ली में किसानों के आंदोलन का समर्थन किया गया और केंद्र सरकार से मांग की गई कि किसानों की किसान विरोधी तीन कृषि कानूनो को निरस्त करने व विद्युत संशोधन अधिनियम, 2020 को वापिस लेने की मांगों को तुरंत मान कर इस आंदोलन को समाप्त किया जाए। किसान पिछले 21 दिनों से सर्दी के बावजूद दिल्ली के चारों बोर्डरों पर बैठे हैं परन्तु सरकार इनकी मांगों पर बातचीत के लिए भी कोई पहल नहीं कर रही है और इसके विपरीत अदानी अंबानी व अन्य अग्रि बिज़नेस कंपनियों के दबाव में आकर किसानों के आंदोलन को बदनाम करने व दबाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रही है।

                बैठक में चर्चा की गई कि इन तीन कृषि क़ानूनों का प्रदेश की कृषि व बागवानी पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। प्रदेश में 87 प्रतिशत से अधिक छोटा व सीमांत किसान है। पहले ही प्रदेश का किसानों व बागवानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिलता है। प्रदेश में अनाज में गेहूँ, मक्का व धान, सब्जियों में टमाटर, गोभी, मटर, आलू व अन्य बेमौसमी सब्जियां तथा फलों में सेब, नाशपाती, किन्नू, पलम, आड़ू आदि की पैदावार मुख्यतः की जाती है। परन्तु सरकार किसी भी फ़सल को न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) पर नहीं खरीद करती है। जिससे किसानों व बागवानों को प्रदेश व प्रदेश के बाहर कम दाम पर अपने उत्पाद बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वर्ष 2005 में ए पी एम सी कानून में सरकार ने संशोधन किया था जिससे किसान व बागवान आढ़तियों व अदानी व अन्य कंपनियों के हाथों सस्ते दामों पर अपने उत्पाद बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
      सरकार के द्वारा पूरे प्रदेश में खुली मण्डियों व अदानी व अन्य कंपनियों को खुली छूट के बाद आज बागवानो को न तो उचित मूल्य मिल रहा है और न ही समय पर खरीदारों व आढ़तियों द्वारा उनके भुगतान किए जाते हैं। आज हजारों बागवानों के सैंकड़ों करोड़ रुपये इन खरीददारों व आढ़तियों के पास फंसे हैं और सरकार इसके लिए कोई भी कार्यवाही नहीं कर रही है। अदानी व अन्य कंपनियां सस्ते दामों पर किसानों व बागवानों से सेब व अन्य फल व सब्जियां खरीद कर इनको 3 महीने स्टोर कर इनको 3 से 4 गुना दामों पर बेच कर मुनाफा कमाते हैं। यदि सरकार इन तीनों क़ानूनों को वापिस नहीं लेती तो भविष्य में प्रदेश व प्रदेश के बाहर मंडिया समाप्त हो जाएगी तो केवल अदानी, अंबानी व अन्य अग्रि बिज़नेस कंपनियों का एकाधिकार बाज़ार पर होगा और किसान व बागवान कॉन्ट्रैक्ट खेती के मजबूर हो जाएगा। इससे किसानों व बागवानों का शोषण बड़े पैमाने पर बढ़ेगा और धीरे धीरे किसानों की जमीन पर इनका कब्जा हो जाएगा।
                  बैठक में निर्णय लिया गया कि किसान संघर्ष समिति 23 दिसम्बर को ब्लॉक व उपमंडल स्तर पर निम्न माँगो को लेकर प्रदर्शन करेगी और सरकार को ज्ञापन देगी।
1. तीन कृषि क़ानूनों को केंद्र सरकार निरस्त करे व विद्युत संशोधन अधिनियम,2020 को तुरंत वापिस ले।
2. प्रदेश में पैदा होने वाली सभी प्रकार की फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए और इसकी खरीद की जाए।
3. किसानों व बागवानों के खरीदारों व आढ़तियों के पास फंसे पैसों का भुगतान तुरंत करवाया जाए व दोषी खरीददारो व आढ़तियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाए।
4. किसानों व बागवानों को सरकार कृषि व बागवानी विभाग से जो सब्सिडी प्रदान की जाती थी उसको जारी रखे व इसको समाप्त करने के निर्णय को तुरन्त वापिस ले। किसानों व बागवानों की पिछले लंबे समय से लंबित सब्सिडी उनको तुरंत दी जाए।
5. एच पी एम सी व हिमफेड द्वारा बागवानों से खरीदे सेब का बकाया भुगतान तुरंत नगद में किया जाए।
                    यदि सरकार तुरन्त इन मांगों पर शीघ्र गौर नहीं करती तो किसान संघर्ष समिति किसानों व बागवानों को संगठित कर भविष्य में आंदोलन करेगी।
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